धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

हिंदू समाज की विजयगाथा का प्रतीक है- गीता जयंती 

श्रीमदभगवदगीता एक ऐसा पुनीत ग्रंथ है जिसमें कर्म व धर्म समाहित हैं। गीता जयंती का पर्व भी कर्म, धर्म व जीवन की गतिशीलता व निरंतरता पर बल देता है। गीता में वेदों का सार तत्व संग्रहीत किया गया है। इसमें धर्म का उपदेश समाहित है, इसमें जीवन जीने की कला का ज्ञान है। इसमें कर्म, भक्ति व ज्ञान का उपदेश हे। इसमें मनुष्य के स्वधर्म का ज्ञान है। गीता की भाषा इतनी सरल है कि थोड़ा सा अभ्यास करने पर मनुष्य सहजता से इसे समझ सकता है। 

श्रीमदभगवदगीता किसी सामान्य व्यक्ति का उपदेश नहीं है अपितु यह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण की वाणी है। इसे कहते समय भगवान स्वयं अपने परमात्मस्वरूप में स्थित थे। यह एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो जीवन की हर परिस्थिति के लिये,हर काल के लिये प्रासंगिक है, शाश्वत है। इसके श्लोकों के भाव इतने गहरे हैं कि उनका थोड़ा सा भी मर्म समझकर उन्हें अपने आचरण में उतारकर व्यक्ति अपने मनुष्य जीवन को सफल कर सकता है। गीता का संदेश सनातन है। 

जीवन में हर कर्म यज्ञमय हो यह गीता का स्पष्ट संदेश है। गीता का मनन करने से जीवन दृष्टि और व्यक्तित्व का विकास होता है। गीता सुनहरे मध्ममार्ग की प्रेरणा देती है अर्थात न तो अहंकार और न ही  कुंठा। गीता के छठे अध्याय में संतुलन योग के लिये स्वयं श्री कृष्ण ने  संतुलित आहार, विहार ,कर्म चेष्टा एवं निद्रा की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट कराया है। स्थूल प्रयास जिससे शरीर संतुलित हो सके तथा मन के संतुलन के लिये भी विस्तृत जानकारी दी गयी है।शरीर, मन और आत्मा के संतुलन के लिये जगह -जगह गीता में अभ्यास करने की ओर ध्यान आकर्षित किया है। सतत अभ्यास से ही यह संतुलन प्राप्त होता है। 

गीता से पता चलता है कि अभ्यास से शारीरिक, मानसिक और आत्मिक क्षमता का उत्तरोतर विकास होता है। गीता में योग,प्राणायाम का महत्व बताया गया है।गीता के अनुसार योग सोई हुई ऊर्जा का जागरण करता है।बिना ऊर्जा के कोई भी यात्रा संभव नहीं है।प्राणायाम के माध्यम से सुप्त ऊर्जा को जागृत किया जा सकता है, जिससे हमारी यात्रा हो सके।गीता में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच बहुत ही प्रभावशाली संवाद है।पूरी गीता में अर्जुन ने भगवान से सत्रह प्रश्न किये हैं । शेष गीता में अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति व संजय के कथन के अतिरिक्त भगवान का समाधान ही है। 

गीता में भगवान के समाधान बहुआयामी हैं।यही गीता की गतिशीलता और उसकी सर्वस्वीकृति का कारण है। गीता में कर्म के विषय पर भी गहन चिंतन किया गया है व जानकारी दी गयी है।कर्म की साधना के लिये भगवान ने गीता में सूत्र दिये हैं वह भी अदभुत हैं – 

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतर्भूर्मा तो संगोस्त्वकर्मणि ।। 

अर्थात तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फल में कभी नहीं। इसलिये तू कर्म के फल का हेतु मत हो तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो। कर्म के विषय में गीता कहती है कि कर्म फल में अधिकार नहीं, कर्म फल का कारण नहीं एवं आलस्य भी नहीं फिर भी कर्म में पूरी तन्मयता। कैसी अदभुत है यह दृष्टि। गीता में कहा गया है कि जो कर्म मानव की ऊर्जा से प्रकट होता है वह शुभ ही होगा। मानव अपनी मौलिक प्रकृति को प्राप्त कर जो भी कर्म करता है वह मंगलकारी होता हे। संसार को परमात्मा का स्वरूप समझने से ही सारे कर्म दिव्य हो जाते हैं। दृश्य व दृष्टा का परमभेद समाप्त हुआ कि परम आनंद का सृजन हो जाता है। 

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने उपदेशों में जीव जंतुओं ,सभी वृक्ष एवं वनस्पतियों ,नदी ,पहाड़ों आदि को अपनी विभूतियों के रूप में बताया है। इनके महत्व का प्रतिपादन किया है। आदिकाल से हम अपनी संस्कृति में इन धरोहरों को सहेजते आ रहे हैं। यदि हमें अपने पर्यावरण व जीवन के अस्तित्व को बचाना है, सहेजना है तो फिर से अपने जीवन में पशु ,पक्षी,  वृक्ष व वन प्रेम विकसित करना होगा। गीता  समग्र जीवन जीने की  कला सिखाती है। गीता जीवन के सर्वोच्च लक्ष्यों को हृदयंगम करने में सहायता देती है।

गीता में साधक के लिए सम्पूर्ण सामग्री है।गीता एक अदभुत ग्रंथ है जिसका अध्ययन और  पठन- पाठन कने से मानसिक दुर्बलता दूर होती है। आजकल जिस प्रकार लोग समाज में  छोटी -छोटी बातों से परेशान होकर, कुंठाग्रस्त होकर आत्महत्या जैसे कठोर पग उठा रहे हैं अगर उन सभी  लोगों के परिवारों के घरों में गीता का पाठ हो रहा होता तो आत्महत्या जैसी बुराईयों से लोगों को बचाया जा सकता है। 

भारत के संविधान की मूल प्रति में नीति निर्देशक तत्वों के चोथे अध्याय के पहले अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए भगवान श्रीकृष्ण का चित्र अंकित है।यह मानवता का सर्वोत्तम आध्यत्मिक ग्रंथ कहा गया है। गीता के उपदेश बिना किसी भेदभाव के सबके लिए प्रयोजनीय है।गीता का विशेष कठिन परिस्थितियों में अध्ययन करने पर संतुलित लाभ प्राप्त किया जा सकता है। अगर गीता को ग्रंथों का ग्रंथ कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है।यह एक सार्वभौमिक और अनादिपथ प्रदर्शक ग्रंथ है। 

वर्ष 2023 में गीता जयंती 22 दिसंबर के दिन हो रही है जिसके ठीक एक माह पश्चात 22 जनवरी 2024 को हमारे रामलला अयोध्या में अपने जन्मस्थान के मंदिर पर बन रहे गर्भगृह में विराजेंगे । यह  हम सभी भारतवासियों के लिए अत्यंत ऐतिहासिक क्षण होगा। अयोध्या में प्रभु श्रीराम को उनका अधिकार दिलवाने में गीता की महत्वपर्ण भूमिका रही है उसी के कारण हिंदू समाज जाग्रत हुआ और संगठित होकर बिना रुके -बिना थके कर्तव्यपथ पर चलता रहा। हिंदू समाज ने प्रभु श्रीराम की मर्यादा और भगवद्गीता के उपदेशों का अक्षरशः पालन करते हुए विजयश्री प्राप्त की है।अयोध्या में प्रभु श्रीराम को उनके अधिकार दिलाने के लिए हिंदू समाज ने अथाह हिंसा और  मानसिक उत्पीड़न भी झेला। जिसकी परिणति अंततः बाबरी ढांचा विध्वंस के रूप में देखने को मिली। अयोध्या में जब 6 दिसंबर 1992 को ढांचा विध्वंस किया गया उस दिन गीता जयंती का ही दिन था। गीता जयंती के दिन हिंदू जनमानस का शौर्य जाग उठा था। गीता जयंती हिन्दुओं की ऐतिहासिक विजयगाथा का प्रतीक है।

— मृत्युंजय दीक्षित