जुड़ाव
गणपति विसर्जन और जुमे की नमाज दोनों ही एक साथ पड़ गए थे| सड़क पर दोनों सम्प्रदायों को आमने-सामने टीवी पर दिखाया जा रहा था| इस अव्यवस्था को लेकर पुलिस की किरकिरी होती देख, फोन घुमा दिया एसएसपी साहब ने|
“जय हिन्द ‘सर’|”
” ‘जय हिन्द’, वह इलाका इतना सेंसटिव है| फिर भी सड़क के एक छोर पर नमाज पढ़ने की इजाज़त क्यों दे दी गयी?” एसएसपी साहब गुस्से में इंस्पेक्टर से बोले|
“सर जी! भीड़ ज्यादा हो गयी थी| मस्जिद में जगह बची ही नहीं थी, अतः डीएम साहबsss !” इंस्पेक्टर साहब का स्वर कंठ से सहमी बिल्ली की ध्वनि-सा निकल रहा था|
“जुलूस को ही थोड़ी देर रोक लेते, नमाज अता होने तक कम से कम|” राय जाहिर करते हुए बोले|
“जुलूस में भी भारी तादाद में लोग थे सर| रोकने से बवाल कर सकते थे|” अपनी समस्या बता दी इंस्पेक्टर ने|
हल्की-सी भी चिंगारी उठी तो आग की तरह फैल जायेगी| सख्ती फिर भी तुम सबने नहीं दिखाई| कुछ हुआ तो डीएम साहब तो जायेंगे ही, साथ में हम सब को भी डूबा के जायेंगे|” चिंता जताते हुए वे गुर्राए|
“चिंता की बात नहीं हैं सर|” वह आत्मविश्वास से बोला|
“क्यों? इतना यकीं कैसे है तुम्हें? जबकि मालूम है कि हर छोटी बात पर उस क्षेत्र में दंगा हो जाता है?”
“सर, क्योंकि क्षेत्राधिकारी मंजू खान सर नमाजियों के साथ और एसपी कबीर वर्मा साहब जुलूस के साथ निरंतर लगे हुए हैं| और.. और सर…दूसरी खुशी की बात यह है कि दोनों के ही तरफ, कोई नेता अभी तक नहीं दिखाई पड़ा है|” इंस्पेक्टर साहब ने स्पष्टीकरण दिया|
“ओह, अच्छा! तब तो चिंता की कोई बात नहीं है| किसी नेता का वहाँ न होना ही तुम्हारे यकीं को पुख्ता करता है, फिर भी अलर्ट रहना!” एसएसपी साहब निश्चिन्त होकर बोले|
“जी सर” इंस्पेक्टर साहब के माथे का पसीना अब सूखने लगा था|
— सविता मिश्रा ‘अक्षजा’