गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अहम की लड़ाई, मिटा दो, मिटा दो
लगी आग जो है, बुझा दो, बुझा दो

उसी पर नहीं लिख सकी गीत जब मैं
ये कागज़, ये स्याही, हटा दो, हटा दो

भले सौ क़िताबें छपे कल को मेरी
जो उस तक न पहुँचे, नदी में बहा दो

भले साथ हों हम या मीलों हो दूरी
मेरे हो मेरे तुम, जहां को बता दो

दुहाई मुहब्बत की दूँगी नहीं मैं
अगर दिल करे तो ही मुझको सदा दो

गगन में चमकते हैं जितने सितारे
ले आओ, मेरी मांग इनसे सजा दो

है नादान ‘ममता’ मुहब्बत में माना
अढ़ाई से आखर तुम्हीं अब पढ़ा दो

— ममता लड़ीवाल

Leave a Reply