गीतिका/ग़ज़ल

सपनों की मंज़िल

बेरोज़गारी के साए में, घिरा हुआ ये जहान है,
आँखों में आँसू हैं मगर, दिल में अब भी अरमान है।

सपने जो बुने थे कभी, वो टूटे नहीं अभी तक,
मेहनत की लहरों से पार, करना हर तूफ़ान है।

रातों को जागकर देखा, हर सुबह का नया रंग,
उम्मीद के दीप जलाए, दिल में वही ईमान है।

जो भी हालात हों मेरे, कभी हार मानूँगा नहीं,
जिन हाथों में मेहनत हो, वहीं तो भगवान है।

रोज़ नई राहें चुनकर, चलना मुझे आता है,
हर क़दम पे लिखना खुद की, तक़दीर की पहचान है।

ये वक्त बदल ही जाएगा, ये तूफ़ान भी थम जाएगा,
जो डटा रहा है मेहनत पर, वही सच्चा इंसान है।

सपनों को पूरा करने की, चाह अगर है सच्ची,
तो मेहनत ही मेरे भाई, तेरा सबसे बड़ा वरदान है।

— हेमंत सिंह कुशवाह

हेमंत सिंह कुशवाह

राज्य प्रभारी मध्यप्रदेश विकलांग बल मोबा. 9074481685