खोया गौरव को लौटाने की कोशिश
सूरज ढलता है,
पुराने स्वप्न जागते,
धरा भी रोती।
हवा की सरगम,
सन्नाटे में गीत गाती,
भीतर का शोर।
स्निग्ध धुंध छाई,
स्मृतियों की परतें टूटें,
रोशनी लौटे।
नदी की लहरें,
सन्नाटा तोड़ती धीरे,
गौरव फिर आए।
पतझड़ की पत्तियाँ,
भूले हुए रंग लौटाएं,
जीवन मुस्काए।
अधूरी कहानी,
हर कदम नई उम्मीद,
गौरव लौटेगा।
चाँदनी रात में,
सपनों का संगम बने,
मन को सुकून।
अतीत के गीत,
आज के धड़कन में बंधें,
सपनों की राह।
फूलों की महक,
भूले हुए रास्ते सजाएं,
गौरव की छाया।
नव प्रभात की किरण,
सहज स्पर्श में नया ज्वार,
जीवन संवरता।
धरा की गोद में,
हर नादियों का मिलन,
संपूर्ण गौरव।
— डॉ. अशोक, पटना
