गीत/नवगीत

गीतिका : विरहन

 

प्रियतम मेरे दूर बसे कैसे भेजूँ संदेश ?
डाल-डाल पर पंछी बसते कैसे करूँ आदेश ? १
खोज थकी मानस मंदिर में अनजाने में बीती रात,
अंधकार मय भइ विभावरि कैसे कहूँ अंदेश ? २
झर-झर बरसे बादल लागे बड़ा भयावन
बूँद -बूँद आतिश सम लागत कैसे सहूँ कलेश ? ३
सावन की घनघोर घटा लागे बहुत डरावन
मै विरहिन हिम तनया सम हूँ स्वयं हुए भावेश ४
प्रियतम मोर विदेश बसे सबहि रचावत प्रेम
मोहि निशा नागिन सी डसती पाऊँ बहुत कलेश ५

राजकिशोर मिश्र [राज]

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि

4 thoughts on “गीतिका : विरहन

  • विजय कुमार सिंघल

    वियोग श्रृंगार की अच्छी कविता !

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीय श्री विजय कुमार सिंघल जी हौसला अफजाई के लिए आभार

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    वाह वाह .

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीय श्री गुरमेल सिंह भमरा जी आपकी प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया एवम् धन्यवाद

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