कविता

कविता

है व्यथित ये मन हमारा
और तड़पता प्यार साथी
हो सके तो कर लो अब
स्वीकार मेरा प्यार साथी

प्यार की परिभाषा न कोई
न कोई सिद्धांत साथी
है फ़कत लिक्खा हुआ
है ढाई आखर प्रेम साथी

राधा हो या हो की मीरा
पाया सबने प्यार साथी
चल मेरे तू साथ में अब
दूंगा सच्चा प्यार साथी

भीड़ में तन्हाईयों में भी

 और इन रुसवाईयों में भी
है नजर आता”अरुण”
सिर्फ तेरा प्यार साथी

डॉ. अरुण कुमार निषाद

निवासी सुलतानपुर। शोध छात्र लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ। ७७ ,बीरबल साहनी शोध छात्रावास , लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ। मो.9454067032

3 thoughts on “कविता

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुंदर !

    • अरुण निषाद

      धन्यवाद सर जी..सादर प्रणाम

    • अरुण निषाद

      धन्यवाद सर जी..प्रणाम….

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