ग़ज़ल
तेरे नजदीक आ रहा हुँ मैं।
तुझको अपना सा पा रहा हुँ मैं।
अपनी दुनियाँ उजाड कर जानम।
दिल की दुनियाँ बसा रहा हुँ मैं।
हसरतोँ के हँसीन फुलोँ से।
दिल की बस्ती सजा रहा हुँ मैं।
टुट जाये कहीँ न साज़े दिल।
गीत उल्फत के गा रहा हुँ मैं।
हो न पायेगी तु जुदा मुझसे।
इतने नजदीक आ रहा हुँ मैं।
हाथ मे दिल तेरे थमा कर के।
अपनी मुश्किल बढा रहा हुँ मैं।
फुँक डालेगा जो मेरे घर को।
ऐसा दीपक जला रहा हुँ मैं।
रात की रात करवटेँ लेकर।
जैसे तैसे बिता रहा हुँ मैं।
‘शिव’