गाय भी तो हमारी माता है
क्या कोई पुत्र देख सकेगा माँ
को चौराहे पर आस लगाये हुए।
चन्द रोटी के टुकड़ों की खातिर
सबके आगे हाथ फैलाये हुए।
गाय भी तो हमारी माता है
फिर क्यों दर-दर है भटक रही।
लाखों सपूतों ने दूध पिया,
फर्ज के बदले वो ही पराये हुए।
क्यों रक्त बहाते हो गौ माँ का
क्या रक्त हो गया पानी है।
माँ की आह प्रलय है लाती
छोड़ दो ये नादानी है।
हिंसा,अपराध,स्वार्थ
और मानवता का चीर हरण।
बेमौसम बरसात,आंधिया,
बंज़र धरती इसकी निशानी है।
गौ रक्षा के लिए ही जग में
प्रभु श्री कृष्ण बने थे ग्वाला।
आज वही माँ ढूंढ रही है
बचे भोजन में अपना निवाला।
गुरु वशिष्ठ अन्य ऋषि मुनियों
ने कामधेनु के तेज को माना।
स्नेहमयी रसपान करा के
गौ माँ ने कितने युगों को पाला।
वैभव”विशेष”