कविता

कविता : देशद्रोहियों से

चीखो मत चिल्लाओ मत
ऐसे शोर मचाओ मत
इनका मकसद धोखेबाज़ी
बातो मे सब आओ मत

जिस थाली मे खाता है तू
उस थाली मे छेद करे
भारत की धरती पे रह के
गैर का गाना गाओ मत

तुझे न भाया भगवा तो भी
तुझको प्यार किया हमने
अब भारत मे दूजों का तुम
झण्डा तो फहराओ मत

सच कहते थे मेरे पुरखे
ये ना ऐसे समझेंगे
ये लातों के भूत है इनको
बातो से समझाओ मत

ज्वालामुखी सा उबल रहा है
जल्दी से निपटारा कर
ज्यादा देर न रोक सकूँगा
अब मुझको उकसाओ मत

— मनोज “मोजू”

मनोज डागा

निवासी इंदिरापुरम ,गाजियाबाद ,उ प्र, मूल निवासी , बीकानेर, राजस्थान , दिल्ली मे व्यवसाय करता हु ,व संयुक्त परिवार मे रहते हुए , दिल्ली भाजपा के संवाद प्रकोष्ठ ,का सदस्य हूँ। लिखना एक शौक के तौर पर शुरू किया है , व हिन्दुत्व व भारतीयता की अलख जगाने हेतु प्रयासरत हूँ.

One thought on “कविता : देशद्रोहियों से

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता ! जिस थाली में खाना उसी में छेद करना. यही देशद्रोहियों का लक्षण है.

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