कविता

जहर बनकर मत बहो

 

गर अब्दुल हामिद नहीं बन सकते ,हाफिज सईद भी मत बनो ,
देश की शिराओ में लहू नहीं बन सकते जहर बनकर मत बहो

—- विजयलक्ष्मी

“JNU में पढो, देशद्रोही नारे घडो
जिसका नमक खाया आँखें तरेरी उसी को ,,
है खौफजदा साप भी आजकल ,,
इंसानों की बस्ती में जगह मिली न उस को ,,
रहा जहर उसका फीका नमक के बिना
उगला जहर उसीने जीना सिखाया जिसको
कैसे कपूत जने तुमने वीरों के देश में
देश बेच रहा वही ,,अपना लहू पिलाया जिसको”

—- विजयलक्ष्मी

विजय लक्ष्मी

विजयलक्ष्मी , हरिद्वार से , माँ गंगा के पावन तट पर रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ हमे . कलम सबसे अच्छी दोस्त है , .

One thought on “जहर बनकर मत बहो

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा छंद !

Comments are closed.