कविता

जय श्री राम !

कभी किसी सिरे फिरे ने प्रभु श्रीराम के अस्तित्व और प्रामाणिकता पर प्रश्न लगाया था। तब उसे जवाब देने के लिए मन से यह उद्गार सहज निकल उठे थे। आज रामनवमी के पावन अवसर पर आपके चरणों में समर्पित हैं। जय श्री राम।

ये भूमि है श्रद्धा और विश्वासों
ये भूमि है रोज़े-व्रत उपवासों की
ये भूमि है वेदों और पुराणों की
धर्म-ध्वजा की धरती पर प्रतिमानों की
ये भूमि है मानव के सम्मानों की
नर रूपी नारायण के अरमानों की
ये भूमि है जप-तप और बलिदानों की
ये भूमि है धरती पर भगवानों की
आनेवाले कल के लिए कहानी है
बीते हुए युगों की एक निशानी है
इस भूमि का कण-कण इक इतिहास है
बात प्रमाणों की करना बकवास है।

इस माटी के कण-कण में तुम पाओगे
कहाँ-कहाँ से कैसे नाम मिटाओगे
इसकी जलवायु में राम समाया है
इस के सिर पर राम नाम का साया है
जब तुम ना थे तब भी यहाँ रहे थे राम
तुंग हिमालय से सागर तक फैले राम
दिलों-दिलों में धड़कन बनकर धड़के राम
जबसे सच है तब से धरती पर हैं राम
राम तुम्हें अपने दिल मिल जाएँगे
राम तुम्हारे साथ अंत तक जाएँगे
राम अगर इस धरती से मिट जाएँगे
राम-नाम सत् है फिर कैस गाएँगे
कागज़ की किश्ती से पार करेंगे क्या
बंजर भूमि पर भी फूल खिलेंगे क्या
तर्कों से बोलो भगवान मिलेंगे क्या
पुस्तक के पन्नों में राम मिलेंगे क्या
राम सुखद सांसों का एक अहसास है
बात प्रमाणों की करना बकवास है।

राम कल्पना नहीं एक विश्वास है
मनुज न छू पाया ऐसा इतिहास है
बाट जोहती शबरी की वह आस है
पत्थर बनी अहिल्या का विश्वास है
राम मनुज की मर्यादा की शान है
नर के जीवित पौरुष का प्रतिमान है
राम नाम है आतंकों के नाशों का
राम नाम है करता अंत विनाशों का
राम, बंदिनी सीता का अभिमान है
राम धर्म की धरती पर पहचान है
राम पराजित मन मे पलती आशा है
राम शांति की सीमा है परिभाषा है
राम, क्रांति की जलती एक शलाका है
स्वाभिमान की उड़ती हुई पताका है
हनुमान के सीने की अंगार है
अंगद की वाणी की एक हुंकार है
भारत के कोटि-कंठों की प्यास है
बापू के जीवन की अंतिम सांस है
बात प्रमाणों की करना बकवास है।

राम ब्रह्म का रूप ब्रह्म-अक्षर हैं राम
राम, शब्द-वाणी और हैं अनुस्वार-विराम
तान सुरीली मीरा में बसते हैं राम
नानक की पावन बानी को रचते राम
राम कबीरा औघड़ की कर-माला में
ठुमक रहें हैं राम सूर-गोशाला में
राम विराजें दिनकर-गुप्त-निराला में
राम झूमते बच्चन की मधुशाला में
राम गुरू का सच्चा धर्म निभाते हैं
कभी जायसी को पंथ दिखाते हैं
राम रहीमा के दोहे भी गाते हैं
तुलसी की चैपाई में मुस्काते हैं
राम अभंग हैं गीत-छंद की जान हैं
राम हैं तो रामायण-वेद-कुरान हैं
राम भावना का अविरल उल्लास है
बात प्रमाणों की करना बकवास है।

हम सदियों से फूले नहीं समाते हैं
अब तक मिट पाए हम ये गाते हैं
कुछ तो याद हमें न कुछ की याद है
राम संस्कृति की स्वर्णिम बुनियाद है
ये स्मारक हैं ये गर मिट जाएंगे
क्या थाथी हम बच्चों को दे पाएंगे?
फिर दुनिया से कैसे तुम टकराओगे?
उस अतीत का कैसे भान कराओगे?
उस जाति का जग में नाम नहीं होता
जिसको बीते कल का ज्ञान नहीं होता
वह तहजीब भी जीते-जी मिट जाती है
जो अपनों से ही सम्मान न पाती है
इतिहासों में ये आलेख नहीं मिलते
शाश्वत विश्वासों के लेख नहीं मिलते
फिर कुरआन पे प्रश्न उठाया जाएगा?
कौन था कातिब पता लगाया जाएगा
कल उंगली ईसा पर भी उठ सकती है
मरियम की ममता झूठी पड़ सकती है
ये गौतम के केषो को भी ठुकरा देंगे
पूजित अस्थि का सच भी झुठला देगे
पत्र-प्रमाणों में गर नाम न छानेगे
शायद अपने बाप को बाप न मानेंगे
आज आपकी बुद्धि की बलिहारी है
मगर आस्थाओं से बुद्धि हारी है
अंश धरा पर खोज रहे अविनाशी का
घट-घट में उस बसे हुए घटवासी का
क्या तारीख भला वर्षो की बोलेगी
क्या एक चींटी आसमान को तौलेगी
प्रश्न राम पर ईश्वर का उपहास है
बात प्रमाणों की करना बकवास है।