भरे बाज़ार में/ग़ज़ल
देखकर सपने, छलावों से भरे बाज़ार में।
लुट रही जनता, दलालों से भरे बाज़ार में।
चील बन महँगाई, ले जाती झपट्टा मारकर
जो कमाते लोग, चीलों से भरे बाज़ार में।
लॉटरी सट्टा जुआ, शेयर सभी परवान पर
बढ़ रही लालच, भुलावों से भरे बाज़ार में।
खल कुटिल काले, मुखौटों पर सफेदी देखकर
जन ठगे जाते, नकाबों से भरे बाज़ार में।
जोंक बन चिपके हुए हैं, तख्त से रक्षक सभी
दे सुरक्षा कौन, जोंकों से भरे बाज़ार में।
हारते सर्वस्व फिर भी, नित्य लगतीं बोलियाँ
दाँव है जीवन, बिसातों से भरे बाज़ार में।
— कल्पना रामानी