कविता

अहसास

तुम्हारी सांसों की गरमाहट

तुम्हारे लबों की थरथराहट

तुम्हारी बातों की कंपकपाहट

क्यों मुझे तुम्हारे नज़दीक ला रही है?

ये अनोखा अहसास……

क्यों मुझे दीवाना बना रहा है

है ये हक़ीक़त या कोई सपना

जो मुझे ख़ुद से ही ख़ुद को चुरा रहा है

$..सुवर्णा..$

सुवर्णा परतानी

सुवर्णा परतानी चंद्र्प्रकाश परतानी 1-2-19&20 Flat no 403 emerald park Gagan mahel road Domal guda Hyderabad 500029 09391128323 Bsc & home science 4th june Housewife

One thought on “अहसास

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया कविता !

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