आर्य विद्वान संन्यासी महात्मा आर्यभिक्षु जी का संक्षिप्त परिचय
ओ३म्
हमने महात्मा आर्यभिक्षु जी को साक्षात् देखा है और स्थानीय वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून में उनके प्रभावशाली अनेक प्रवचनों को सुना भी है। उनको स्मरण करने और आर्य पाठकों को उनका संक्षिप्त परिचय देने के लिए हम उन पर कुछ पंक्तियां लिख रहे हैं। महात्मा आर्य भिक्षु जी सन् 1970-80 व बाद के दशकों में वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के अर्धवार्षिक उत्सवों में प्रायः आमंत्रित किये जाते थे। हमने तपोवन में सन् 1970-74 के मध्य जाना आरम्भ किया था। वहां हमने महात्मा आर्य भिक्षु जी और स्वामी विद्यानन्द विदेह जी के अनेक अवसरों पर अनेक प्रवचनों को सुना। महात्मा जी जब भी प्रवचन आरम्भ करते थे तो सबसे बुलवाते थे कि ‘ईश्वर सदा सर्वदा सबको प्राप्त है किन्तु सदोष अन्तःकरण में उसकी प्रतीति नहीं होती’। यह वाक्य हमें तभी स्मरण हो गया था। हमें उनका यह वाक्य दर्शन के सूत्रों के समान हिन्दी का एक बहुत मूल्यवान् आध्यात्मिक सूत्र प्रतीत होता है। आपके प्रवचनों से ही ज्ञात हुआ था कि स्यात् आप वैश्य वर्ग से थे और एक बार बरेली की नगर पालिका के अध्यक्ष पद भी रहे थे। आप बहुत दान दिया करते थे। हमने तपोवन आदि और पत्र पत्रिकाओं आदि के माध्यम से कई बार इस विषय में पढ़ा व सुना था। उन दिनों जब कि रूपये का मूल्य आज से कहीं ज्यादा था, तब आप हजारों रुपयों की धनराशियां अनेक प्रसिद्ध संस्थाओं को दान दिया करते थे। एक बार एक प्रवचन में आपने बताया था कि आपने अपनी पौराणिक सनातनी माताजी को तीर्थ यात्रा कराई। आपकी माता जी ने नैपाल के पशुपतिनाथ मन्दिर जाने का आपसे अनुरोध किया था। आपने माताजी से पूछा कि आप वहां क्यों जाना चाहती हैं? इस पर माता जी ने उस मन्दिर में पूजा अर्चना करने का महात्म्य बताते हुए अपने पुत्र आर्यभिक्षु को कहा था कि जो मनुष्य पशुपतिनाथ मन्दिर की तीर्थ यात्रा सम्पन्न करता है उसका अगला जन्म पशु का नही होता। इस पर टिप्पणी करते हुए आपने कहा था कि कोई मनुष्य अगले वा परजन्म में पशु बनना नहीं चाहता।
आप अनेक वर्षों तक आर्य वानप्रस्थ एवं संन्यास आश्रम, ज्वालापुर, हरिद्वार के प्रधान पद पर भी रहे। आप उपदेशक व प्रचारक के रूप में तो शोभायमान होते ही थे आपने वानप्रस्थ आश्रम ज्वालापुर के प्रधान पद पर रहकर इस पद को सुशोभित किया था या यह कहें कि आपके प्रधान होने से यह पद गौरवान्वित हुआ था। आपने लगभग 20-25 वर्ष पहले जब वानप्रस्थ आश्रम, ज्वालापुर में स्वामी सर्वानन्द सरस्वती, दीनानगर से संन्यास लिया था तो हमें भी वहां जाने व आपके संन्यास संस्कार में भाग लेने का अवसर मिला था। उस दिन शायद अप्रैल का महीना और बैसाखी का पर्व था। यह इस लिए याद है कि हमारे मित्र व गुरु प्रा. अनूप सिंह जी भी वहां मिले थे जो बैसाखी के दिन प्रायः हरिद्वार जाते थे और वहां योग निकेतन, ऋषिकेश में स्वामी योगेश्वरानन्द जी के शिष्यों वा अपने मित्रों से मिलते थे। प्रा. अनूप सिंह जी स्वामी योगेश्वरानन्द जी के बहुत विश्वस्त शिष्य थे। वह स्वामी जी की बातें समय समय पर हमें बताया करते थे। यह भी बता दें कि यही स्वामी योगेश्वरानन्द जी आर्यसमाज के विख्यात संन्यासी विद्वान महात्मा आनन्द स्वामी जी के योगगुरु थे। स्वामी जी की वेश भूषा बहुत सरल व साधारण होती थी। वह काषाय रंग की धोती पहनते थे। धोती के ऊपर वह पीले रंग में रंगा हुआ बनियान पहनते थे। लम्बी दाढ़ी व लम्बे बाल रखते थे। उनका कद सामान्य था। लगभग साढ़े पांच फीट ऊंचाई रही होगी। वह न पतले थे न मोटे, उनका शरीर सामान्य था। रंग गौर वर्ण था। प्रवचन धारा प्रवाह होता था। बहुत प्रभावशाली बोलते थे। हमने उनके अनेक प्रवचनों को मन्त्र मुग्ध होकर सुना व उसमें विशेष आनन्द का अनुभव किया। प्रवचन की दृष्टि से वह हमारे पसन्दीदा विद्वान थे।
डा. भवानीलाल भारतीय जी ने महात्मा आर्यभिक्षु जी पर अपनी पुस्तक ‘आर्य लेखक कोष’ में बहुत संक्षिप्त जानकारी दी है। उनके द्वारा दी गई पूरी जानकारी भी हम प्रस्तुत कर रहे हैं। वह लिखते हैं कि महात्मा आर्य भिक्षु का जन्म 31 जनवरी, 1923 को मुगलसराय में श्री प्रसादजी के यहां हुआ। इनकी शिक्षा हरिश्चन्द्र कालेज वाराणसी में हुई। इनका पूर्वाश्रम का नाम श्री रामजी प्रसाद गुप्त था। कालान्तर में इन्होंने वानप्रस्थ की दीक्षा ली और धर्म प्रचार में जुट गये। आप आर्यगजट के सम्पादक रहे हैं। परोपकारिणी सभा के आप सदस्य हैं तथा महर्षि दयानन्द निर्वाण स्मारक ट्रस्ट अजमेर के प्रधान पर पर आप कई वर्षों से कार्य कर रहे हैं। वैदिक धर्म और विश्व शान्ति आपके लेखकीय कार्य हैं।
दयानन्द चित्रावली में महात्मा आर्य भिक्षु जी को त्यागी, तपस्वी, शिक्षाशास्त्री, मार्मिक वक्ता, ‘मानस’ के मधुर गायक, आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश के कुशल संचालक और हिन्दी सत्याग्रह संग्राम का सेनानी बताया गया है।
आज हमारे पास रात्रि समय कुछ अवकाश के क्षण थे और मन में विचार आया तो हमने अपने उपर्युक्त संस्मरणों को लेख का रूप दे दिया। आशा है पाठक इसे पसन्द करेंगे।
–मनमोहन कुमार आर्य
अति उत्तम ! जानकारी के लिए धन्यवाद !