ग़ज़ल
सजी महफ़िल ग़ज़ल की हो सुनाना अर्ज भी होगा |
ज़माने की हकीकत को बताना फर्ज भी होगा ||
छिपा लेना ज़माने से भले ही तुम गुनाहों को |
गुनाहों का खुदा के पास लेखा दर्ज भी होगा ||
बिना मांगे नहीं मिलता किसी भी दर्द का मरहम |
दवा हो या दुआएँ हो बताना मर्ज भी होगा ||
वफ़ा की राह पर चलना हमें सबने सिखाया है|
वफ़ा के गीत लिखना “हिन्द” का अब फर्ज भी होगा||
— बी.के. गुप्ता “हिन्द”