गीतिका/ग़ज़ल

“गीतिका”

कुछ तो बात है आप के आशियाने में

चल गुबार आए एक ही शामियाने में

गुमशुम सी हवा निकली जैसे इस गली से

दीवार मसगूल हुई जुड़कर बतियाने में॥

एक ही अरमान है हाथ पकड़ ले पैसा

एक ही अलाव है मुराद हथियाने में॥

गरज निवाले भी चुप हो गए लगते

अब कैसी मंशा उनके घिघियाने में॥

पूछ लिया हाल तो बीमार से लगे

लग बैठे अपनी थैली गठियाने में॥

कुछ बोझ हम भी उठा लेंगे इनका

कुटिल कराल सा सठ सठियाने में॥

गौतम बारात में बाराती तो बहुते हैं

सब हैं मस्त इक दूजे को गरियाने में॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ