गीतिका/ग़ज़ल

“गीतिका”

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आइए इनसे मिलिए कुछ विरासत की बात करते हैं
आज इनके लिए भी कुछ वक्त अपना बर्बाद करते हैं
हम पाले हुये तेज घोड़े इनके इस ऊंट को देखिए
सीधे खड़े इस अष्टवक्र का चलो अपवाद करते हैं॥
अभीतक कैसे खड़ी है यह इमारत अपने वजूद पर
अबकब काम आएगा हथौड़ा उठो विखवाद करते हैं॥
मोल-भाव नजर के सामने यह हस्ताक्षर तो देखो
लगाके बोली इस साफ़े को फिर साधुवाद करते हैं॥
छोडकर चले गए अपनी यह तस्वीर न जाने कहाँ
मरे तो होंगे पहले आज इनकी रामनामी सत्यवाद करते हैं॥
उठो भरते हैं अपने रंग इन विरासत की दीवारों में
ताकत लगाओ बोलो मेरे साथ खूब जिंदावाद करते हैं॥
भूत पिचास डकैत चोर विषधरों की गढ़ है यह खंडहर
हटाते हैं इसे मिलकर यहाँ से अब पलायनवाद करते हैं॥

महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ