गीतिका/ग़ज़लपद्य साहित्य

सफर- अब तक

दोस्तों पेश है अब तक के सफर की कुछ झलकियां …कुछ अशआर जो आपने बोहोत पसंद किये और मक़बूल हुए…पेश-ए-खिदमत हैं :-

चेहरे रोशन हैं पर दिल बुझे से रहते हैं
आजकल लोग बनावट से भरे रहते हैं

मिले सुकून जो उड़ जाये रूह के पंछी
अपने ही घर में किस बेबसी से रहते हैं
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दौलत भी उसने बाँट दी शोहरत भी उसने छोड़ दी
चाह फिर भी न गयी सवाब ढूंढते रहे

कोशिशें हज़ार थी अपने दिफा-ए-यार की
पर ‘अजनबी’ वो मुझे में गुनाहगार ढूंढते रहे
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खुद से मिलने का इतना बहाना ना हुआ
हमसे बैठे न बना उनसे जाना ना हुआ

गलतियां जो भी थी काबिल-ऐ-बर्दाश्त थीं
हम अपनी अना न हटे उनसे मनाना न हुआ
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बेदर्द ज़माने से वफ़ा मांगते हैं
मरीज़ खुद मरीजों से दवा मांगते हैं

शोख अदाओं से जिबह करते है मासूम मुझे
मेरे क़ातिल मेरे मरने की वजह मांगते है
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जो थे खुशबुओं से तेरी सराबोर ढूंढते हैं
दिल की तहों में हैं वो कहीं और ढूंढते हैं

मुझे मिल सका न अबतक जिसकी तलाश में था
खुद में ही है वो शामिल कहीं और ढूंढते हैं

अंकित शर्मा 'अज़ीज़'

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