कहानी~वह कौन था?~
वह कौन था ? जिसे हमने प्रत्यक्ष अपनी नजरों से देखा ,विश्वास नही होता की क्या ये सत्य है अथवा नजरों का धोखा, पर है ये सच्ची घटना।अक्सर कहानियों मे ऐसी घटनाये पढ़ने मे मिलती थी, लेकिन सत्यता से कोसों दूर मानव समाज के अतिरिक्त अन्य अदृश्य समाज के बारे मे कल्पना और सत्यता केबीच निरन्तर बहस चलती रहती है। जिसने देखा वह प्रमाणित नही कर सकता जो प्रमाणित कर सकता है उसने देखा नही, बात यही पर समाप्त नही होती बहस आगे बढ़ती है और बड़े बड़े विद्वान खोजी महापुरुषों तक जाती है क्योकि वे इसी की तो खोज करते हैं लेकिन मानते नही की अदृश्य आत्माओं का भी अपना समाज होता है जो मानव को दृष्टिगोचर नही है।जो समाज मनुष्य के लिए अदृश्य है वही समाज पृथ्वी पर रहने वाले कुछ जीवों को दिखाई देता है यह एक रहस्य है।
गो गोचर जंह लगि मन जाई,
सो सब माया जानेहु भाई।।
मानव शरीर दो छिद्रोंसे युक्त कब्र की तरह है, जिससे वाह्य संसार का कितना भाग देखा जा सकता है?और कब्र से बाहर निकलने पर मेमोरीचिप कब्र मे ही छूट जाती है।आज मैं आपको अपने जीवन की एक सत्य घटना बताने जा रहा हूँ ,इसे कल्पना मान कर मेरा अपमान मत करना यदि मेरी इस सच्ची घटना पर विश्वास नही तो खोज करना तो तुम्हे मेरी कथा की प्रामाणिकता मिल जायेगी। क्योंकि आज का विज्ञान मृत्यु की ओर अग्रसर है,लम्बा जीवन जीने की कला आज के विज्ञान मे नही है। जिस दिन परमाणु के अंदर मनुष्य का वायुयान मार्ग बना लेगा उस दिन इस ब्रह्माण्ड को समझने का विज्ञान द्वारा प्रथम प्रयास होगा।
गर्मी का मौसम मई माह का अंतिम सप्ताह दिन सोमवार शाम की भीषण गरमी का प्रकोप लोगों को रात्रि के समय भी अमन चैन से नींद भर सोने नही देता था।दिन भर खेतों मे काम करनेके बाद शाम समय मच्छरों का बोलबाला ऊपर से वायु का संचार रंचमात्र भी न था,जिसके कारण सोना तो दूर आराम से बैठना लेटना तक दूभर था।प्रकृति मानो अग्नि वर्षा कर रही हो कि मेरी सारी सृष्टि तपकर सोने समान शुद्ध एवम् खरी हो जाय परन्तु ऐसा वातावरण सृष्टि के सारे जीव जन्तुओं के प्रति अहित का प्रतीक था।गर्म माह की गरमी से गर्म वायु से व्याकुल दिन मे पेड़ों की छाया की तलाश करते हुए लोगों को उसके नीचे भी शकून नही मिल पाता था।लगने लगा की सारा का सारा वातावरण तप्त नीरस सा हो गया है।वातावरण की नीरसता का कारण सविता की किरणों का धरातल पर प्रचंड वेग से लम्बवत उतरना था। प्रचण्ड सूर्य ताप से वायु दाब काफी कम हो गया जिससे लोग बेहाल थे।
शाम को सूर्य देव के अस्त होने के कारण लोगों को दिन की झुलसन से राहत आयी थी।सम्पूर्ण गावँ मे चहल पहल का वातावरण व्याप्त हो गया,बच्चे खलिहानों मे लुकाछिपी का खेल खेल रहे थे।लोग अपने अपने कार्यों को बड़े हो आनन्द से निपटा रहे थे ताकि दिनभर दिनकर महराज की कृपा से व्याकुल शरीर को जल्दी आराम मिले अतएव कार्य मे ततपरता से लगे हुए थे।और जल्दी जल्दी कार्य सम्पन्न करना चाहते थे।सायं के समय मैं आम के बाग मे बैठा बैठा गावँ मे सन्नाटा होने का इंतजार कर रहा था।
आमों की रखवाली हेतु बाग मे बैठा बैठा सोंच रहा था की जल्दी समय व्यतीत हो और मैं घर की राह लूँ तथा आराम से दिन भर की लू से परेशान शरीर को आराम दे सकूँ,कोई व्यक्ति मेरी बाग से पके पके आम के फलों को कहीं तोड़ न ले जाय,इस भय से मुझे उसकी रखवाली के लिए कुछ रात गए तक बैठना ही था और मैं इसी उद्देश्य से बैठा भी था।
काली चतुर्दशी की रात नौ बज चुके थे अब कोई आम चुराने नही आएगा ये समझकर मैने निश्चिन्त होते हुए,घर की ओर लम्बे लम्बे कदम बढ़ाये। कदमों से घरका रास्ता नापते घर पहुंच गया। भोजनोपरांत सभी लोग आराम की ठण्डी सांस अपने अपने विस्तर पर ले रहे थे। मैंने भी भोजन किया और बाग से लाये पके पके आमो का रसास्वादन किया जो पकने के बाद गर्मी के प्रकोप से सूख गए थे जिसके कारण उसमे मिठास और भी अधिक बढ़ गयी थी।उदर तृप्ति पश्चात मैंने भी विस्तर की शरण ली लेटते ही लेटते मुझे नींद आ गयी और मैं गहरी नींद मे सो गया।
मैं भूत प्रेत को नही मानता,इतना अवश्य मानता की पीपल के पेड़ पर दैवीय शक्तियों का वास होता है चूंकि पीपल का पेड़ मनुष्य के स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि से भी उपयोगी है अतएव उसका महत्व समाज मे आवश्यक है।सनातन धर्म के ईष्ट भगवान श्रीकृष्ण ने गीता मे साफ साफ कहा है की पेड़ों मे “पीपल” स्वयं मैं हूँ। पीपल की वैसे भी आयुर्वेद व आज का विज्ञान भी सार्थकता स्वीकार कर चुका है।पर्यावरण की शुध्दता मे भी पीपल का विशेष महत्व है।पीपल पर ब्रह्मदेव का वास होता है जिससे पीपल को ही लोग ब्रह्मदेव कहने लगेय य यूँ कहे की पीपल का दूसरा नाम ही ब्रह्मदेव है। खैर जो भी हो कहावत के अनुसार मेरे माता-पिता ग्रामवासी बड़े बूढ़े कहा करते थे “बेटा गाँव के पश्चिम मे विशालपीपल जो है,उस पर ब्रह्मदेव बाबा का निवास है हमने कई बार खेतों मे पानी लगाते समय मध्य रात्रि मे देखा है,और वे पश्चिम से पूरब वाले पीपल तक तथा दक्षिण वाले पीपल से होते हुए रात को बारह बजे के समय लालटेन लेकर आते जाते रहते है जिसका उजाला साफ दिखाई देता है साथ ही साथ खड़ाऊँ की आवाज चट्ट चट्ट साफ साफ सुनाई देती है। बात कुछ मेरी समझ से परे थी। मैं कहता “यह सब झूठ है”।मेरे पिता जि श्रीहरीनारायण शुक्ल एक निडर,साहसी,सच्चे व नेक प्रबृति के व्यक्ति थे।
एक दिन की घटना है पिता जि को ड्यूटी से घर आने मे देर हो गयी। पिता जि ने कपड़े बदले और लोटे मे जल लिया लेट्रिन के लिए चल दिए,जाड़े की रात 10 बजे का समय मेरे घर के सामने सुनसान जंगल जंहा बेर,खजूर आम जैसे पेड़ो के साथ-साथ झाड़ियाँ भी थी,वहीं पर गाँव के सब लोग लेट्रिन को जाते थे। उस दिन वहीं पर पिता जि भी गए जब वापस लौट कर आये तो मेरी माँ श्रीमती रामसखी ने पिता जि के हाथ से लोटा लेकर धुलने लगी तो पिता जि कहने लगे “व कहत रहै अत्नी देर काहे कर दिहो” इस बात को बार बार दोहरा रहे थे,लेकिन माँ समझ नही पा रही थी तो माँ ने कहा “का अत्नी देर अत्नी देर कहत हउ” मैं पिता जि के कहने का मतलब समझ चुका था तो मैंने पिता जि की बात को दोहराते हुए माँ से बताया कि पिता जि को “वह मिली थी”माँ तुरन्त समझ गयी और कहने लगी” वहां जंगल मे काहे को गए,खेत य मैदान मे चले जाते”चलो हाथ पैर धुलो भोजन करो भूख बड़ी तेज लगी है “कहत रही होई”।
वास्तव मे वह एक अदृश्य स्त्री की आवाज थी।जिसकी पायल की आवाज तक का भी गाँव के लोगो को एहसास था इस कहानी मे इस बात का उल्लेख इसलिए किया गया क्योंकि हमारी एरिया मे उस समय इस तरह की घटनाएं घटती रहती थी और इस कहानी की सच्चाई इसी तरह की घटना से सम्बन्धित है। अब हम मूल कहानी पर चलते हैं।
रात्रि के लगभग ग्यारह बजे का समय था मैं गहरी नींद मे सो रहा था अचानक बादलों की गड़गड़ाहट के साथ एक बड़ा सा तूफान जल बृष्टि को लेकर आया।बादलों की आवाज मेरे कर्ण पटल पर कम्पायमान होने से मेरी निंद्रा भंग हो गयी उस ध्वनि मे इतनी कड़क थी की मैं भयभीत होकर तुरन्त ही विस्तर से उठकर बैठ गया और कमरे से बाहर आ गया। बाहर का दृश्य बड़ा ही मनोरम लग रहा था।काले काले बादलों के कारण अंधेरा घना लग रहा था। बादलो की गड़गड़ाहट के पूर्व दामिनी की चमक काले वातावरण को सजाने का प्रयत्न कर रही थी। पर भयानक घनावाज लोगों के हृदय को चीरने का प्रयत्न करण पटल से होते हुए करती थी।इतना कुछ होते हुए भी पानी की फुहारों से धरती सीझ रही थी देखते ही देखते तेज तूफान के साथ वर्षा की गति तेज हो गयी।हवाओं की गति तेज और मूसलाधार बारिश पेड़ों पर थपेड़ा मार रही थी।समस्त पेड़ मानों सृष्टि को झुककर नमन कर रहे हों ऐसा प्रतीत हो रहा था।उनकी आवाज ऐसी हृदय को कंपा देने वाली थीकि मानो वे पेड़ प्रकृति से रोकर अपने किये गए कुकृत्य पर विचार करने के बाद आर्त पुकार कर रहें हों कि मुझे क्षमा करो!रात्रि का दृश्य बड़ा ही भयानक एवम् मनोरम था।पवन देव को शायद पेड़ो पर दया आगयी,इसी कारण उन्होंने अपने वेग को कुछ कम कर दिया था।वर्षा ने भीबादलों से सारा जल शायद छीन लिया था इसीलिए बारिश अब फुहारों के रूप मे पुनः होने लगी थी।वायु का संचार रुक रुक कर लहर ले रहा था।मैं घास,फूस कांटे विषैले जीव जन्तुओं की बिना परवाह किये पानी मे छप छप करता बाग की ओर निडरता के साथ बढ़ा चला जा रहा था।
मनुष्य के सामने चाहे जो परिस्थिति हो उसे लालच बना रहता है। ऐसी भयानक स्थिति मे भी मुझे सबसे बड़ी चिंता यह थी कि कोई मेरी बाग मे तूफान से गिरे आमों बीन न ले जाय।मैं सोंचता की इस तूफान ने पेड़ के समस्त आम्र फलों को नीचे गिरा दिया होगा सभी कच्चे पक्के फल पेड़ के नीचे फैले पड़े होंगे।मुझेसमय का ठीक से अंदाजा नही हो पाया मेरी समझ से इस समय सुबह के चार बजें होगें यह मैंने सोंचा,मुझसे रहा न गया सो फुहार से बचने के लिए छाता,आम बीनने के लिए झोला,जानवरों से बचने के लिए लाठी लेकर बाग की ओर रवाना हो गया।वायु के झकोरों को झेलता पानी मे छप छप करता और फुहारों का आनन्द लेता बाग की ओर बढ़ा चला जा रहा था।जैसे जैसे बाग के करीब पहुंच रहा था वैसे जलबृष्टि एवम् पवन वेग प्रबल होती जा रही थी।हवा की गति तेज होने के कारण छाता मेरे शरीर को पानी से बचा न सका मैं अच्छी तरह से भीग गया।भीगने के साथ वायु अपनी गति रूपी लाठियों से अविराम प्रहार कर रहा था जिसके कारण मैं ठण्ड रूपी घाव से बुरी तरह घायल हो गया तथा जो घर से चलने पर आनन्द की अनुभूति हुई वह जाती रही।मुझे बार बार पश्चाताप हो रहा था कि मैं गलत आ गया।
किसी तरह ठण्ड से कराहते कराहते मैं अपनी अमृतमयी आम की बाग मे पहुंच गया। बाग का निरीक्षण करने पर वहां का दृश्य बड़ा ही विचित्र दिखाई दिया।बाग मे चारो तरफ मेड़ बंधी होने के कारण पानी का जमाव दो से तीन सेंटी मीटर तक मोती परत के रूप मे हो गया था। पेड़ पर दृष्टिपात करने से लगता था कि पेड़ पर लटकने वाले अमृतमयी आमों को शायद पवन ने किसी रंजिश के कारण ऊपर से नीचे पानी मे ढ़केल दिया है। वे बेचारे पानी मे डूब कर ठंडे हो गए हैं।ठण्ड के मारे मैं पानी मे से उन आमों को डूबने से बचा नही सका,और पेड़ के पास बच्चों द्वारा बनायी फूस की झोपड़ी मे जा बैठा।इस स्थान से इस पेड़ के अतिरिक्त सम्पूर्ण बाग का निरीक्षण किया जा सकता था।आकाशीय बिजली की चमक मे बाग नजारा साफ साफ दिखाई देता था।काले अंधियारे वातावरण मे मैं पूरब गाँव की ओर मुंह किये टक टकी लगाये देखता हवा का झोंका झेल रहा था।सारा शरीर थर थर कांप रहा था दांतों का तो कहना ही क्या वे दुष्ट मेरी ऐसी हालत देखकर खुशी से कट कट का बाजा बजा कर मेरी खिल्ली उड़ा रहे थे।इन सबके बाद भी मैं उत्साहित होकर प्रसन्न मन सुबह होने का इंतजार कर रहा था।किसी तरह दिल को समझाये ठण्ड को सहन करने का साहस लिए सोच रहा था कि तीन चार बजे का वक्त होगा अभी सुबह हो जाएगी और मैं ढेर सारे आमों को इकठ्ठा करके घर ले जाऊंगा,इस तरह की बात सोंचकर मैं बेहद खुश था जैसा कि स्वभावतः लोग खुश होते हैं।
ठंड के प्रकोप से परेशान बादलों की कड़क बिजली की चमक एवम् वायु के झकोरों के बीच मेरी नजरें बाग के चारो तरफ जांच कर रही थी कि अचानक पूरब की ओर एक आश्चर्य दिखाई दिया”एकतीव्र”प्रकाशपुंज” लगभग दो सौ मीटर बाग से दूर पूरबदिशा से आता दिखाई दिया मैंने सोचा कि”कोई व्यक्ति उधौली से पोलर जलवाकर लिए जा रहा होगा किसी के यहां मुंडन आदि होगा नही नही अगर ऐसा होता तो शाम को ले जाता ये तो भोर पहर वो भी इतनी भयानक जल बृष्टि मे फिर विचार आया हो सकता कोई व्यक्ति अपनी बाग को आम बीनने जा रहा होगा उसी की टार्च का प्रकाश होगा लेकिन इतना तेजप्रकाश और क्या ये इतनी तेज दौड़ता हुवा आ रहा है फिसलने का डर नही वो भी मेड़ पर,पर यह क्या?मेरे इतना सोचते ही वह प्रकाश मेरी बाग के समीप आ गया इतनी तीव्र गति आश्चर्य!अब उस प्रकाश मे एक विशेष बात मालूम देने लगी थी वह यहकि उस प्रकाश का दो खास रंगों से युक्त होना उसका अगला भाग “स्वेतप्रकाश”तथा पिछला भाग रक्तवर्ण “लालप्रकाश”था।
इस घटना को देखने पर मुझे सन्देह नही रह गया कि यह कोई आदमी है।मुझे पूरा यकीन हो गया की यह कोई मनुष्य समाज से परे कोई शक्ति है। तब तक वह मेरे बाग मे प्रवेश कर चुकी थी मैं बाग के दक्षिण पूरब किनारे पर और वह उत्तर पूरब किनारे से पश्चिम की ओर जा रहा था मेरे और उसके बीच की दूरी का अंतर केवल चलीस मीटर का था।मैंने फिर सोचा यदि कोई आदमी आम बीनने आया होगा तो जब झुककर आम उठाने लगेगा तब मैं उसे पुकारकर मना करूंगा, पर यह क्या वह तो आगे को बढ़ता जा रहा था और वह बाग मे जिस पेड़ के नीचे से होकर जाता उस पेड़ के नीचे पड़े आम और तूफानों से गिरी टहनियां प्रकाश मे साफ नजर आ रही थी और दो रंगो से युक्त प्रकाश आगे बढ़ता जाता था। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही था साथ ही साथ प्रसन्नता और जिज्ञासा के साथ मैं उसका परीक्षण करने लगा कि यह कहाँ तक जायेगा।वह”प्रकाशपुंज”दयालबाग के पश्चिम -उत्तर कोने पर जहां गोल आम का पेड़ था वहां पहुंच चुका था।वह “प्रकाश”मेरी बाग से बाहर उत्तर पश्चिम कोने पर पंहुच चुका था मैंने देखा बाग के उत्तर -पश्चिम कोने से लगभग दो सौ मीटर की दूरी पर स्थित एक पीपल पर पहुंच गया वहां पहुंचने पर उस प्रकाश मे कुछ परिवर्तन हुवा वह स्वेत रंग का प्रकाश उसी जगह ठहरकर दिखना बन्द हो जाता है लेकिन लाल रंग का “प्रकाश”उसी स्थान से लगभग पचास फिट ऊपर उठकर तुरन्त बाद वह खास उत्तर माइनर के उस पर स्थित बग की ओर जाता दिखाई दिया जो शायद वहां पर स्थित पीपल तक गया होगा। अब मैं पूर्ण रूप से समझ चुका था कि यह “प्रकाश”कोई और नही ब्रह्मदेव बाबा ही होंगे।
अब मेरी समझ मे ये भी बात आ गयी कि रात्रि ज्यादा है,और ठंड भी लग रही है,घर चलना चाहिए।मैंने कांपते हुए झोला,लाठी,छाता संभाला और घर की ओर पुनः वापस चल पड़ा घर पहुंचकर दीवाल घड़ी पर देखा तो रात्रि के सवा बारह बजे थे। माँ ने वापस आया देख वह घटना समझ चुकी थी बोली डर तो नही लगा मैं पहले ही कहती थी कि रात्रि ज्यादा है चलो कपड़े बदलो!मैंने गीले कपड़े उतारे और विस्तर पर पुनः सो गया तथा एक गहरी लम्बी नींद के बाद पुनः प्रातःकाल नींद खुली तब गया बाग से पूछने की वह कौन था ? कोई भी बताये,वैज्ञानिक,विज्ञान ही बताये की वह कौन था। यह प्रश्न आज भी मेरे मनमे बनाहै और निरुत्तर है की आखिर “वह कौन था?”