“दिन आ गये हैं प्यार के”
खिल उठा सारा चमन, दिन आ गये हैं प्यार के।
रीझने के खीझने के, प्रीत और मनुहार के।।
चहुँओर धरती सज रही और डालियाँ हैं फूलती,
पायल छमाछम बज रहीं और बालियाँ हैं झूलती,
डोलियाँ सजने लगीं, दिन आ गये शृंगार के।
रीझने के खीझने के, प्रीत और मनुहार के।।
झूमते हैं मन-सुमन, गुञ्जार भँवरे कर रहे,
टेसुओं के फूल, वन में रंग अनुपम भर रहे,
गान कोयल गा रही, दिन आ गये अभिसार के।
रीझने के खीझने के, प्रीत और मनुहार के।।
कचनार की कच्ची कली भी, मस्त हो बल खा रही,
हँस रही सरसों निरन्तर, झूमकर कर इठला रही,
बज उठी वीणा मधुर सुर सज गये झंकार के।
रीझने के खीझने के, प्रीत और मनुहार के।।
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)