लघुकथा

हसरत

विमला ने पैसे एक प्लास्टिक की डिब्बी में रख भगवान के सामने रख दिए. हाथ जोड़ कर उसने मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद किया. अब उसका बेटा स्कूल जा सकेगा.
उसकी हसरत थी कि उसका बेटा पढ़ लिख कर कुछ बने. डरती थी कि यदि उसे स्कूल नही भेज सकी तो बस्ती के बुरे लड़कों की संगत में कहीं बिगड़ ना जाए. पिछले कई महिनों से वह पेट काट कर अपनी तनख्वाह में से एक हिस्सा अपनी मालकिन के पास जमा करा रही थी. घर में पैसे रखना खतरनाक था. एक तो खोली सुरक्षित नही थी. दूसरा सबसे बड़ा खतरा उसका पति था.
उसका पति एक नंबर का शराबी और बदमाश इंसान था. गलत लोगों की सोहबत में रह कर झपटमारी तथा चोरी करता था. इस चक्कर में कई दफा जेल भी गया था. ज्यादातर अपने दोस्तों के साथ आवारागर्दी करता रहता था. जब कभी कोई हाथ नही मार पाता था तो पैसों के लिए घर आ जाता था. घर में जो भी मिलता छीन कर ले जाता था.
विमला खुश थी. कल ही वह बेटे के स्कूल की फीस जमा कर देगी. उसने कुछ मैले कपड़े धोने के लिए उठाए. कल जब स्कूल जाएगी तो साफ सुथरे कपड़े पहन कर जाएगी. वह कपड़े भिंगो ही रही थी कि उसका बेटा भागता हुआ आया. उसने बताया कि उसके पिता बस्ती के बाहर किसी से झगड़ रहे हैं.
यह बात सुनते ही विमला घबरा गई. यदि वह बस्ती तक आया है तो घर जरूर आएगा. उसके आने का एक ही मकसद होता है. कहीं यह पैसे उसके हाथ ना लग जाएं. वह सोंचने लगी कि इन पैसों की रक्षा कैसे की जाए.
वह जानती थी कि वह हर संभावित स्थान पर पैसे खोजेगा. उसने आंखें बंद कर मन ही मन ईश्वर से मदद की गुहार लगाई. जब उसने आंखें खोलीं तो उसे रास्ता समझ आ गया था.
कुछ मिनटों में ही उसका पति घर में दाख़िल हुआ और सीधे उससे पैसों की मांग की “वह पैसे मुझे दो.”
“मेरे पास कोई पैसे नही हैं.” विमला ने गुस्से से कहा.
वह गुस्से से चिल्लाया “अपने पति से झूठ बोलती है. मुझे पता है कि तू अपनी मालकिन से पैसे लेकर आई है.”
विमला ने नफरत से कहा “पति होने का कौन सा फर्ज निभाया है तुमने.”
उसके पति ने उसे एक थप्पड़ मारा और खुद ही पैसे ढूंढ़ने लगा. उसने सारा घर उथल पुथल कर डाला. उसके हाथ कुछ नही लगा. तभी उसके साथी ने आकर खबर दी कि पुलिस उसे ढूंढ़ रही है. हार कर उसे जाना पड़ा. लेकिन जाते हुए धमकी दे गया कि वापस आकर उससे निपटेगा.
उसके जाते ही विमला ने चैन की सांस ली. वह उठी और कपड़ों की बाल्टी में हाथ डाल कर एक थैली निकाली. उसने पैसों की डिब्बी को पॉलीथीन की थैली में अच्छी तरह लपेट कर भींगे कपड़ों के बीच छिपा दिया था.
सही समय पर तरकीब सुझाने के लिए उसने भगवान का धन्यवाद किया.

*आशीष कुमार त्रिवेदी

नाम :- आशीष कुमार त्रिवेदी पता :- C-2072 Indira nagar Lucknow -226016 मैं कहानी, लघु कथा, लेख लिखता हूँ. मेरी एक कहानी म. प्र, से प्रकाशित सत्य की मशाल पत्रिका में छपी है