कविता

“लटकी तस्वीर”

मुक्त काव्य

विश्वविद्यालय के परिसर की

हँसती खिलखिलाती भीड़ की

और मेरा वहाँ से निकलना हुआ

मेरे साथ थी उत्कंठा अनुज की

किताबों की जिल्द नेताओं से अमीर थी

वहाँ लटकी हुई तस्वीर थी।

चुनावी परिणाम खुशी की लहर

मेरा अनुज भी तो है अति बहर

फूलों की माला गले की शोभा

विजय पताका गुलाल की रगर

जीता कोई और गली अमीर थी

वहाँ लटकी हुई तस्वीर थी।।

धीरे से खिसका रात घर पहुँचा

सुबह को दिखा लाला का खरचा

कहा बधाई हो लगता है जीत गए

भैया बड़ी मेहनत से भरा था परचा

जीत की अबकी भारी उम्मीद थी

वहाँ लटकी हुई तस्वीर थी॥

जाओ नहा लो खाना भी खा लो

खेत में आकर फावड़ा उठा लो

बहाना पढ़ाई का कबतक चलेगा

अब तो कुछ अपनी गृहस्ती निभा लो

तुम्हारे भी मन में कैसी तरकीब थी

वहाँ लटकी हुई तस्वीर थी।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ