तुझे याद भी न करना तुझे भूल भी न पाना
मुझे प्यार ने सिखाया है प्यार यूँ निभाना ।
तुझे याद भी न करना तुझे भूल भी न पाना ।
मेरे यार का करम है इस इश्क का का फ़साना ।
यूँ दूरियाँ बढ़ाकर नजदीकियां बढ़ाना ।
हर शै में मिल रहा है दरे इश्क का ठिकाना ।
आया है जब से दिल को दिल की तरह झुकाना ।
मेरे लफ्ज़ भी उसी के मेरे जज़्ब भी उसी के,
मेरी सांस सांस गाये अब उसका ही तराना ।
सिखला रही है उल्फत मुझको नए सलीके,
दीदार दिल से करना रग-रग से मुस्कराना ।
इतना सा फ़लसफ़ा बस है आशिकी का ‘नीरज’
सबकुछ ही हार करके सबकुछ ही जीत जाना ।