विकृति को बढ़ावा देनेवाले फैसले
सुप्रीम कोर्ट देश का सर्वोच्च न्यायालय है। इसके फैसले कानून बन जाते हैं। अतः जिस फैसले से समाज का स्वस्थ तानाबाना तार-तार होता है, उसपर गंभीरता से विचार करने के बाद ही निर्णय अपेक्षित है। हाल में सुप्रीम कोर्ट के कुछ ऐसे फैसले आये हैं जिससे समाज में विकृति फैलने की पर्याप्त संभावनाएं हैं, भारत की सदियों पुरानी स्वस्थ परंपराएं जर्जर होने के कगार पर आ गई हैं।
*कुछ माह पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि दो वयस्क स्त्री-पुरुषों के साथ-साथ रहने (Living together) और परस्पर सहमति से यौन संबन्ध स्थापित करने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है, यानि ऐसे संबन्ध कानूनन वैध हैं। यही नहीं, ऐसे संबन्धों से उत्पन्न सन्तान को पिता की संपत्ति में भी अधिकार होगा। दुनिया के सभी धर्मों ने विवाह संस्था को अनिवार्य माना है, इसीलिए इसे विश्वव्यापी मान्यता प्राप्त है। सुप्रीम कोर्ट का Living together वाला फैसला विवाह संस्था पर सीधा आक्रमण था, जिससे कई विकृतियां उत्पन्न हो सकती हैं।
*सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला कुछ ही दिन पहले समलैंगिकता पर आया। समलैंगिक विवाह और यौन संबन्ध को कोर्ट ने मान्यता प्रदान करते हुए इसे वैध घोषित किया। यह निर्णय पूर्ण रूप से प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन है। मनुष्य के अतिरिक्त किसी और प्राणी में समलैंगिकता नहीं पाई जाती है। पश्चिम में यौन-सुख की प्राप्ति के लिए नये-नये प्रयोगों ने इस विकृति को बढ़ावा दिया। हमारे सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम की इस विकृति को कानूनी जामा पहना दिया।
*कल सुप्रीम कोर्ट ने एक चौंका देनेवाला फैसला सुनाया जिसके अनुसार किसी महिला द्वारा विवाह के पश्चात भी अन्य पुरुषों से यौन-संबन्ध रखना वैध माना गया। इसे अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया। अब कोई महिला डंके की चोट पर कई पुरुषों से संबन्ध रख सकती है। उस महिला से जन्म लेनेवाले बालक/बालिका का वैध पिता तो उसका वैध पति ही माना जायेगा, परन्तु असली पिता/जैविक पिता की पहचान करना मुश्किल होगा। हमारे धर्म ग्रन्थों में पुरुषों के चार दुर्व्यसन बताए गए हैं — १. मदिरापान, २. जूआ खेलना ३. अनावश्यक आखेट/हिंसा ४. परस्त्रीगमन। इनमें परस्त्रीगमन को सबसे बड़ा पाप बताया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपराधिक कृत्य न मानते हुए जायज ठहराया है। कुछ वर्षों के बाद किसी औरत को ‘पतिव्रता’ कहना गाली देने के समान हो जाएगा, ‘कुलटा’ कहलाना staus symbol हो जाएगा, जिस तरह आजकल Boy friend से वंचित लड़कियां स्वयं को हीन महसूस करती हैं। अधिक से अधिक पर पुरुषों से संबन्ध औरतों के सौन्दर्य और आकर्षक व्यक्तित्व का पर्याय बन जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी नहीं सोचा की इससे एड्स जैसी बीमारियों में बेतहाशा वृद्धि हो सकती है।
समझ में नहीं आता कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। समाज पतन की ओर उन्मुख है और हम शुतुर्मूर्ग की तरह आँखें चुराए मौनी बाबा बने हुए हैं।