कहानी

कहानी – त्योहार के रंग उत्सव के संग

दीपावली की सफाई के साथ ही बच्चों की अधिक से अधिक पटाखे लेने की फरमाइश बढ़ती जा रहीं थीं । घर की सफाई के अलावे भी कई काम पड़े हुए थे। सुनिधि का मन पर्व त्योहार के नाम पर ही आनंदित हो जाता । एक खींची खिंचाई रोजमर्रा की जिंदगी और आम दिनचर्या से अलग हो सब भूल कर उल्लसित होने के लिए ही शायद मानव जीवन में त्योहारों का समावेश किया गया है।
दीपावली में दो दिन बचे थे। सुनिधि ने नए सिरे से घर को सजा लिया, मेवा मिष्ठान बनाने की तैयारी हो गई थी । बच्चों के नए कपड़े बन गये थे।
उन्हें प्रफुल्लित देख सुनिधि अपने बचपन की गलियों में खो गई …..त्योहार का आनंद तो संयुक्त परिवार में आता था। हर त्योहार की तैयारी महीनों पहले से होने लगती थी । क्या बच्चे क्या बड़े सब अपने अपने ढ़ंग से उत्सव के रंग में रंग जाते ।
दीपावली में बहनों के साथ मिल रंगोली सजाई जाती, घरकुंडा बना मिट्टी के बरतनों में खील बताशे भर माँ अन्नपूर्णा की पूजा की जाती। बड़े बुजुर्ग लक्ष्मी माता और गणेश जी से सुख समृद्धि बनाए रखने की प्रार्थना करते। तरह-तरह के पकवान बनते थे।भाइयों का उत्साह तो देखते ही बनता था….अमित भैया ने ढेर सारे पटाखे खरीदे थे, छोटे भाइयों में डर पैदा कर उनसे दूर रखा जा रहा था ।
नए कपड़े पहन हम इतराती हम बहनों को घर के काम करती शीतल की बेटी से कोई मतलब नहीं था जो आज भी फटे फ्राक पहन माँ की मदद कर रही थी।मैं उस दिन अपनी प्रिय सहेली शबनम को घर ना बुला पाने के कारण दुखी थी।
उस दिवाली ब्याही बुआ घर आईं हुईं थीं । लक्ष्मी पूजन के पहले उनहोंने हम सब बच्चों को अपने कमरे में बुलाया । बुआ उपहार देते हुए  हम सबको त्योहार का महत्व समझा रहीं थीं ….ये त्योहार जिन्दगी  की नीरसता समाप्त कर उसमें सरसता और नवीनता का संचार करते हैं जिससे जीवन में उमंग के रंग भर जाते हैं । हर त्योहार कुछ संदेश देता है जो मानव जीवन से जुड़ा रहता है, जैसे बसंत पंचमी में माँ सरस्वती की पूजा  की जाती है जो विद्या की देवी हैं और तुम सब विधार्थी उनकी उपासना कर अपनी पढाई के प्रति  सजग होते हो। होली में हम सामाजिक भेदभाव भूल कर एक दूसरे पर रंगों की बौछार कर, गले मिल कर पुराने गिले शिकवे दुर करते हैं । दशहरे पर भगवान राम की पूजा की जाती है तो रावण दहन कर बुराइयों का अंत दिखाया जाता है।कहीं कहीं उस वक्त दुर्गा पूजा होता है ।शक्ति के प्रति आस्था रखते हुए हम नकारात्मक ऊर्जा से निकलने की कोशिश करते हैं । देवी दुर्गा की दुर्गोत्सनी मतलब बुराई पर अच्छाई के रुप में पूजा की जाती है।
दशहरे के बाद दीपावली मनाई जाती है जिसमें तुम सब बच्चे इतने उत्साहित हो। घर सजाना,नए कपड़े पहनना ,आतिशबाजी करना या जुआ खेलना ही त्योहार का मतलब नहींं है । तुमने शीतल की बिटिया को देखा जो आज भी फटे कपड़ों में सुबह से ही माँ की मदद कर रही है।
बुआ ने फिर समझाते हुए कहा ….बेटा त्योहार तो खुशी बाँटने का नाम है । पटाखों पर पैसे बरबाद कर हम वायु प्रदूषण करने के अलावे क्या कर रहें हैं ? अगर वही पैसे हम किसी गरीब की झोपड़ी में दीये जलाने में लगाएं तो सोचो उन्हें कितनी खुशियाँ मिलेंगी । अगर शबनम तुम लोगों के साथ दीपावली का पर्व मनाये और तुम उसके साथ ईद मनाओ तो सोचो कितना अच्छा रहेगा । हमें एक दूसरे की संस्कृति को देखने और समझने का मौका मिलेगा । पैसे से त्योहार का आनंद नहीं लिया जा सकता।गरीब अमीर हिन्दु मुस्लिम सब आपसी भेदभाव भूल कर गले मिल त्योहार मनाएं तभी त्योहार मनाना सार्थक होगा।दादी माँ को समझा कर उनकी राजी से बुआ ने शबनम को दीवाली की संध्या घर बुला लिया था।
फोन की घंटी बज रही थी…एकाएक सुनिधि वर्तमान में लौट आई। मुसकुरात हुए उठा गई दिवास्वपन से। बुआ की सीख याद आ रही थी, ठान  लिया उसने पति के मना करने के बावजूद एक और मिठाई की थाली सजेगी मिसेज अंसारी के घर के लिए , कुछ और कपड़े व दीये पटाखे भी खरीदें जाएँगे बगल की बस्ती के बच्चों के लिये ….आखिर यही तो उमंग के रंग हैं त्योहार के , कि सबके होठों पर मुस्कान और दिलों में खुशियाँ हों ।
किरण बरनवाल 
जमशेदपुर

किरण बरनवाल

मैं जमशेदपुर में रहती हूँ और बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय से स्नातक किया।एक सफल गृहणी के साथ लेखन में रुचि है।युवावस्था से ही हिन्दी साहित्य के प्रति विशेष झुकाव रहा।