सपनों का बीज
बोया था मैंने एक बीज
अपने आंगन के कोने में,
लगे कई वर्ष अंकुरित होकर
उसे बड़ा होने में।
धीरे धीरे फैले पत्ते
और फैली शाखाएं,
लिया एक बड़ा पेड़ का आकार
देने लगी शीतल हवाएं।
उसके घनी छांव तले
बैठकर सुस्ताने लगे पथिक,
मिटाकर अपने शरीर की थकान
आनंदित होते बहुत अधिक।
कहा एक दिन एक पथिक ने..
किया तुमने बड़ा नेक काम,
हम थके हारे राहगीरों को
बैठकर छांव तले
मिलती बड़ी शांति और आराम।
इसकी शीतल बयार में
सूख जाता तन का पसीना,
चल देते हम कुछ देर ठहर कर
जहां है अपना ठिकाना।
ऐसे ही सब लोग अगर
मिलकर बीज बोएंगे,
वह दिन फिर दूर नहीं
सब मिलजुलकर मीठे फल खाएंगे,
और ठंडी छांव में बैठकर
शुद्ध हवा का आनंद उठाएंगे।
पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।
प्रिय सखी ज्योत्स्ना जी, हमेशा की तरह बहुत सरल व सुंदर गीत के लिए शुक्रिया.