सुहानी वेला
बुद्ध पूर्णिमा की सुहानी वेला थी. इसी दिन एक विचित्र संयोग भी हुआ था, जो शायद किसी की जिंदगी में नहीं हुआ हो.
बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था, इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था.
इस सुहानी वेला ने मुझे रोमांचित कर दिया था. मुझे लगा खुद गौतम बुद्ध बात कर रहे हैं.
”मेरा जन्म का नाम सिद्धार्थ रखा गया. मेरे पिता शुद्धोदन कपिलवस्तु के राजा थे और उनका सम्मान नेपाल ही नहीं समूचे भारत में था. मेरी मौसी गौतमी ने मेरा लालन-पालन किया, क्योंकि मेरे जन्म के सात दिन बाद ही मेरी मां का देहांत हो गया था. वैसे तो मैंने कई विद्वानों को अपना गुरु बनाया, किंतु गुरु विश्वामित्र के पास मैंने वेद और उपनिषद पढ़े, साथ ही राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली. कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान, रथ हांकने में कोई उनकी बराबरी नहीं कर सकता था.”
”महात्मन, आप तो समता के महान उपदेष्टा थे, आज संसार में समता का नामोनिशान नहीं दिखता, बताइए तो समता कैसे आ सकती है?” हमारी जिज्ञासा थी.
”कभी भी बल से किसी भी समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता है, आध्यात्मिकता प्राप्त करने का अधिकार प्रत्येक स्त्री-पुरुष को है.”
”आज संसार क्रोध की ज्वाला में जल रहा है. क्रोध से क्या-क्या हाँइयां होती हैं?”
”क्रोध करने से मनुष्य का चेहरा कुरूप हो जाता है, उसे पीड़ा होती है, वह गलत काम करता है, उसकी संपत्ति नष्ट हो जाती है, उसकी बदनामी होती है, उसके मित्र और सगे-संबंधी उसे छोड़ देते हैं और उस पर तरह-तरह के संकट आते हैं.”
”क्रोध से छुटकारा कैसे मिल सकता है महात्मन?”
”इसके 4 उपाय हैं-
”1. मैत्री से : जिस आदमी के प्रति क्रोध या क्षोभ हो, उसके प्रति मैत्री की भावना करो.
2. करुणा से : जिस आदमी के प्रति क्रोध या क्षोभ हो, उसके प्रति करुणा की भावना करो.
3. मुदिता : जिस आदमी के प्रति क्रोध या क्षोभ हो, उसके प्रति मुदिता अर्थात हित चाहने की भावना करो.
4. कर्मों के स्वामित्व की भावना से : जिस आदमी के प्रति क्रोध या क्षोभ हो, उसके बारे में ऐसा सोचो, कि वह जो कर्म करता है, उसका फल अच्छा हो या बुरा, उसी को भोगना पड़ेगा .”
भगवान बुद्ध फिर से समाधिस्थ हो गए थे.
आज बुद्ध पूर्णिमा है. आप सबको बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं.