राजनीति

क्या हम शरणार्थी हैं ?

-गंगा ‘अनु’

संसद के दोनों सदनों में नागरिकता संशोधन विधेयक पास हो चुका है और महामहिम राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह अब नागरिकता संशोधन कानून में परिणत हो चुका है। लेकिन पश्चिम बंगाल समेत देश के अन्य जगहों पर इसका विरोध लगातार जारी है। इस विधेयक के संसद में पास होने के बाद पश्चिम बंगाल के कई जिलों में व्यापक हिंसा और आगजनी की घटनाएं हुई थीं। यदि देखा जाए तो यह मुद्दा कांग्रेस के शासनकाल में ही उठाया गया था जो कि आज फिर से प्रकाश में आया और अब अधिनियम बना दिया गया है। लेकिन सवाल है कि आधार कार्ड बनाने पर जोर दिया गया क्यों? और उस पर यह स्पष्ट लिखा है कि यह नागरिक होने का प्रमाण नहीं है तो फिर क्यों इसे बनवाने के लिए हरेक भारतीयों पर दबाव बनाया गया?

इस बारे में भाजपा को सोचना चाहिए कि इसी आधार कार्ड के लिए पिछले कई सालों से जनता परेशान है। इसके लिए लोगों को अपना काम-धंधा चौपट कर एक जगह से दूसरे जहग जाना पड़ा। आखिरकार क्या लाभ हुआ? पहले तो आधार कार्ड के लिए बेकार का खर्च वहन करना पड़ा और दूसरा समय एवं व्यवसाय, पढ़ाई-लिखाई की बर्बादी करना पड़ा। क्या यह सब इसलिए कि आज मोदी जी कहेंगे कि अब राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) एवं नागरिकता कानून (सीएए) के तहत देशवासियों को नए सिरे से नागरिकता दी जाएगी? यह सब सवाल आम जनता का प्रधानमंत्री से है।

मीडिया से बातचीत के दौरान अमित शाह ने कहा कि एनआरसी लेकर कौन आया? मैं कांग्रेस अध्यक्ष और गुलाम नबी आजाद से पूछना चाहता हूं कि 1985 में जब असम समझौता हुआ तब पहली बार एनआरसी की बात स्वीकार की गई। उसके बाद हमारे 1955 के नागरिकता एक्ट में 3 दिसंबर 2004 को क्लॉज 14 (ए) जोड़ा गया। इससे स्पष्ट है कि तीन दिसंबर 2004 को यूपीए की सरकार थी। हमारी सरकार नहीं थी। उसके बाद में रूल चार जोड़ा गया, जो देशभर में एनआरसी बनाने की ताकत देता है, वो भी 9 नवंबर 2009 को जोड़ा गया। उस समय भी कांग्रेस की सरकार थी। उनके (कांग्रेस) बनाए कानून पर वो हम से ही सवाल कर रहे हैं। तो क्या आपने कानून शो केस में रखने के लिए बCAAनाया था? जरूरी नहीं लगता था तो क्यों कानून बनाया?’ अमित शाह ने कहा कि यह कटु सत्य है कि इस देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ। बंटवारा कभी धर्म के आधार पर नहीं होना चाहिए, लेकिन कांग्रेस ने बंटवारा धर्म के नाम पर सरेंडर किया और इस देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ। इसमें बहुत से लोगों का नुकसान हुआ। 1950 में नेहरू और लियाकत अली खान में समझौता हुआ कि दोनों देश अपने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करेंगे। तब से लेकर अब तक के आंकड़ों को देखिए, पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की संख्या कम हो गई। जब नेहरू-लियाकत समझौते पर अमल नहीं हुआ। तब ये करने की जरूरत पड़ी।

शाह जी की यह सब बातें मान भी लिया जाए तो भी यह कहना उचित होगा कि कांग्रेस ने तो इधर कई सालों से आधार कार्ड या एनआरसी को लेकर बात नहीं की तो फिर केन्द्र सरकार ने क्यों यह मामला उसकाया? ऊपर से आधार कार्ड बनवा लेने पर भी आम जनता को एनआरसी एवं सीएए के लिए क्यों कहा जा रहा है? यह आग फैलाने का काम नहीं तो क्या है?

जबकि दूसरी ओर देश में दंगे एवं आगजनी होने के बाद मोदी जी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में सभा करके वही घिसीपीटी बातें दोहरा रहे हैं कि एनआरसी एवं सीएए जनता को साम्प्रदायिक रूप से बांटने के लिए नहीं।

तो भई जनता आपसे पूछ रही है कि आखिर क्या है? आखिर क्यों आपने आधार कार्ड बनवाया और उसका बैंक खाते से लिंक करने को कहा? क्यों और कैसे आम जनता के बैंक खाते से रुपये निकाली गई? क्या इसमें भी कांग्रेस या किसी पार्टी के समर्थकों का हाथ है?

दूसरी बात यह सोचनीय है कि मोदी जी के सत्ता में आने के बाद जब आर्थिक स्थिति गड़बड़ हुई, जब वे लोगों को नौकरी न दे सके तो वही घिसीपीटी बातें दोहराया कि पकौड़े बेचो, चाय बेचो और जिविका चलाओ। जब वे लोगों को नौकरी न दे सके तो बैंक में रुपये डालने का ढांढस बंधाया और उल्टे बैंक खाते में एक हजार रुपया रखना जरूरी कर दिया। इसके बाद दिनोंदिन गैस सिलेन्डर की सब्सीडी हटाया। इसके अलावा अब वे बैंकों के एकीकरण कर के बेसरकारीकरण की कोशिश में हैं।

गंगा ‘अनु’

गंगाराम पुत्र श्री जयराम शिक्षा बी.ए. (आॅनर्स) संप्रति – मध्य पल्ली, आगरपाड़ा पो.- बेलघरिया, कोलकाता पिन – 700 056 (त्रिभाषा उच्च विद्यालय के नजदीक) एसबीआई एटीएम के सामने संपर्क- 84203 41322 / 98744 74446 E-mail : [email protected], [email protected]