कविता

पास दूर

दुनिया जितनी करीब आ गई हमारे
पड़ोसी उतना ही दूर हो गया
सत्य है या है असत्य
यह आप पर मैं छोड़ता
कितना जानते हैं अपने पड़ोसी को
और कितने अंतरंग हम
मैं और रामदास दोनों हैं पड़ोसी
दोनों एक दूसरे को नहीं जानते
जाने तो जाने कैसे
मैं एक  फैक्टरी का मालिक
और एक आलीशान बिला मेरा
उनका भी एक बहुत बड़ा शो रूम
और तिमंजला कोठी है
इसके सिवाय हम कुछ नहीं जानते
हम दोनों एक दूसरे को अपने से कम आंकते हैं
जब कभी आते जाते
दरवाजे पर आपस में टकरा जाते हैं
एक दूसरे को देख चेहरे पर ला झूठी हंसी
हालाकि एक दूसरे को देखना हमें नहीं पसंद
हैलो के सिवाय कुछ नहीं बोल पाते

ब्रजेश

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020