नव दिवस
है रात ढलती सुरमयी,
अब भोर होने को चली,
जागती आंखों में सपने,
नव संजोने को चली।
दिन नया है, चुन रहा है,
आस के कोमल सुमन,
नव प्राण भी भर रहा है,
मन्द सुगन्धित पवन।
है दिवस नव ईह के अब,
तो यह पट तू खोल दे,
और सुंदर है यह जीवन,
स्वयं से यह बोल दे।
है अगर जीवन समर तो,
उसको तू स्वीकार कर,
पथ में संकट है खड़े जो,
आज उनपर वार कर।
उठ खड़ा हो और बढ़,
जीवन दिवस नव मार्ग पर,
स्वप्न जो देखे सुनहरे
कल के, वो साकार कर।
— प्रियंवदा तिवारी