गीत/नवगीत

गीत – माँ तुझको मैं सीस झुकाता हूँ

तेरी फूलों जैसी गोदी में।
तेरी ठंडी मीठी लोरी में।
श्रद्धा वाले फूल चढ़ाता हूँ।
माँ तुझ को मैं सीस झुकाता हूँ।
बचपन को तड़क सवेरे दिए।
सुख ही सुख चार चुफेरे दिए।
मैं तुझ से बलिहारे जाता हूँ
माँ तुझ को मैं सीस झुकाता हूँ।
उंगली पकड़ कर चलना सीखाया।
प्रथम जीवन का पाठ् पढ़ाया।
नित्त्य गुणगान तिरे मैं गाता हूँ।
माँ तुझ को मैं सीस झुकाता हूँ।
मेरे जीवन में तेरी खुशबू।
मेरे मस्तिष्क में तेरी रूह।
परछाई में तुझ को पाता हूँ।
माँ तुझ को मैं सीस झुकाता हूँ।
बीच जवानी शुद्ध आचरण दिया।
उच्य विद्या वाला दर्पण दिया।
कर्मों वाले फूल उठाता हूँ।
माँ तुझ को मैं सीस झुकाता हूँ।
चूल्हा चैंका रोटी मक्खन।
चंगेर पतीला मूढ़ा ढ़क्कन।
आज भी खुद को स्मरण करवाता हूँ।
माँ तुझ को मैं सीस झुकाता हूँ।
भाई बहनों में गेड़ी के दिन।
खुशबू बाग़ चमेली के दिन।
इक वैकुंड में उतर जाता हूँ।
माँ तुझ को मैं सीस झुकाता हूँ।
बापू का खेतों बीच पसीना।
अपनी शिक्षा का उत्तम नगीना।
उन्नति वाले नग़्में गाता हूँ।
माँ तुझ को मैं सीस झुकाता हूँ।
उमंगों से तूने विवाह रचाए।
हम सबके तूने शकुन मनाए।
तेरी कृपा में शर्माता हूँ।
माँ तुझ को मैं सीस झुकाता हूँ।
पोते पोतियों से लाड लडाए।
दोहते दोहतरियाँ गले लगाए।
तेरी मूर्त में मन्दिर पाता हूँ।
माँ तुझ को मैं सीस झुकाता हूँ।
बच्चा अगर रोए फिर हँसाए।
सारी की सारी रात रीझाए।
यादों से ही याद चुराता हूँ।
माँ तुझ को मैं सीस झुकाता हूँ।
संयुक्त घर का था प्यार निराला।
ज्यों अर्चन पूजा एक शिवाला।
बरकत वाले गीत सुनाता हूँ।
माँ तुझ को मैं सीस झुकाता हूँ।
रोतो को भी खूब हँसा देती।
बुझते हुए दीप जगा देती।
दुख भीतर जब भी घबराता हूँ।
माँ तुझ को मैं सीस झुकाता हूँ।
माँ की पूजा में रब्ब की पूजा।
इस जैसा कोई और न दूजा।
सारी दुदियां को समझाता हूँ।
माँ तुझ को मैं सीस झुकाता हूँ।
दुनियां तक माँ की हस्ती रहती।
यह नदिया तो युग युग है बहती।
‘बालम’ को संदेश सुनाता हूँ।
माँ तुझ को मैं सीस झुकाता हूँ।
— बलविन्दर ‘बालम’

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409