संस्मरण

कैलाश चुप रहता है

कैलाश सेवानिवृत्त विधुर इकलौती संतान बेटी के परिवार के साथ जीवन संध्या में जीवन की शेष सांसें पूरी कर रहा है। एक डॉक्टर ने कैलाश को टिप्स दिए थे कि बुजुर्गों को बच्चों के साथ रहना है तो दो मंत्रों का पालन करना चाहिए। पहला अपना मुंह बंद रखें। दूसरा अपने पर्स का मुंह खुला रखें। इसी लिए कैलाश चुप रहता है। समय का सदुपयोग करने के लिए विद्यार्थियों एवं प्रतियोगिता परीक्षाओं के उम्मीदवारों को पढ़ाई परीक्षा के टिप्स देता रहता है । मार्गदर्शन सलाह कैरियर चुनाव समस्याओं का समाधान पर वार्ताएं देता है। अपनी लिखित प्रकाशित पुस्तकों की पी डी एफ कॉपी उन्हें ई मेल पर उपहार स्वरूप भेजता रहता है। बच्चे भी कैलाश अंकल से खुल कर अपनी समस्या शेयर करते हैं। जीवन संध्या में बच्चों का निर्मल निस्वार्थ पवित्र प्यार कैलाश के लिए टॉनिक विटामिन है एवम स्वास्थ्य को निर्मल बनाए रखने में सहायक होता है। कैलाश के सीधे सरल स्वभाव एवम भावुकता के कारण कई व्यक्ति उसका मिसयूज भी करते हैं। कैलाश सीधा है लेकिन बेवकूफ नहीं। कैलाश उन स्वार्थी व्यक्तियों से उलझता नहीं बस कैलाश चुप रहता है। उन्हें इग्नोर अवॉइड कर दूरी बना लेता है। दे जाओ अथवा छोड़ जाओगे। साथ नहीं ले जा पाओगे। इस मंत्र पर कैलाश अमल करने का प्रयास करता है। बेटी उसके जीवनसाथी की ज़िम्मेदारी है इसलिए बेटी के लिए कुछ भी छोड़ कर जाने का कर्तव्य कैलाश का है नहीं। अपने माता पिता पत्नी अनुज सभी को कैलाश ने स्वयं अपनी आंखों से इस संसार से खाली हाथ जाते हुए देखा है। प्रत्येक इंसान को समय पूरा होने पर जाना ही होता है। मृत्यु एक अटल सत्य है। कोई भी अमृत पी कर नहीं आता। कैलाश मन से अंतिम सांस के समय के लिए तैयार है। सभी की तरह भी कैलाश भी खाली हाथ जाएगा। इसलिए कैलाश दे जाओ के सिद्धांत पर कार्य करता है। कोई भी अपना पराया सच्ची समस्या बतलाकर अथवा झूंठी कहानी गढ़ कर कैलाश के पास आता है तो कैलाश के पास हो तो मदद कर देता । बस कैलाश चुप रहता है एवम सामर्थ्य अनुसार मदद कर देता है। कोई रिकॉर्ड नहीं रखता। किसी को स्मरण भी नहीं करवाता। कैलाश बस इतना रिजर्व में अपने पास इसलिए रखता है कि आपातकालीन स्थिति में कैलाश को किसी के आगे हाथ नहीं फैलाने पड़ें। शेष राशि की सीमा के अंदर कैलाश किसी को भी निराश नहीं करता। कैलाश को सोच है कि जीवित अवस्था में अपने खुद के हाथों से जितना भी संभव ही हो बस देते रहो देते रहो देते रहो। साथ कुछ नहीं जाएगा। कोई ज़िम्मेदारी शेष नहीं रही इसलिए किसी के लिए भी बचा कर रखने की कैलाश को ज़रूरत नहीं है। जो स्मार्ट व्यक्ति सीधे कैलाश को धोखा दे चुके हैं उनकी हिम्मत ही नहीं हो पाती की वे दुबारा कैलाश को धोखा देने आएं। उनसे कैलाश ने स्वयं ही दूरियां बना ली है। रिश्ता किसी से भी नहीं तोड़ता। बस कैलाश अपने अपने हजारों विद्यार्थियों के लिए जी रहा है। कई पराई बेटियां कैलाश को राखी भी बांधती हैं। सगी बहनों के होते हुए भी कई बार कैलाश की कलाई राखी के दिन सूनी रह जाती है। भाई दूज पर कैलाश का मस्तक मंगल टीके के बिना सूना रह जाता है। जी नहीं। तीनों दरवाज़े बंद हो जाने पर ईश्वर कोई खिड़की खोल देता है। कैलाश के मस्तक एवम कलाई को सजाने के लिए कोई दीदी बहन बेटी साक्षात स्वयं कैलाश के कमरे में आकर शगुन कर जाती है। कैलाश भीगी पलकों से उनके निस्वार्थ पवित्र निर्मल स्नेह के समक्ष निशब्द रह जाता है। जीवन में कैलाश ने खोया कम है पाया अधिक। कैलाश जब अपने जीवन का स्वयं मूल्यांकन करता है तो पाता है कि उसके जीवन का गिलास आधा ही नहीं पूरा भरा हुआ है। साथ ही छलक भी रहा है। इस का कारण है कि कैलाश चुप रहता है। कैलाश चुप रहता है। कोई अपनी सी बहन बेटी कैलाश की कुशलता पूछती है तो कैलाश सब ठीक होने का असत्य नहीं बोल पाता बस कैलाश रो पड़ता है। सदा चुप रहने वाला कैलाश रो पड़ता है। जी हां कैलाश चुप रहता है एवम कई बार कैलाश रो पड़ता है। बस कैलाश रो पड़ता है। इस संस्मरण का अंत इति नहीं हो सकती।

— दिलीप भाटिया

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी