कविता

छ्न्द-आल्हा (अर्ध सम मात्रिक)

डोर रिश्तों की लगी ढीली. टूटती जब भी पड़े भार।
इसमें भरी स्वार्थ गांठे. मीठी वाणी भर दे प्यार।।१
वचपन से जाना छोटू सा , अब लगा सियाने हो गए,
क्रोध में दूर होकर तके. जो गाली पड़ती सी हार।।२
हाथ पकड़ वो संग बुलाये, फिर सुना घर का समाचार ,
अब कम मिलने की आदत से, दूर दिखे से पीठ निहार।।३
अब तो यही लगता सही बस, मतलब का ही है संसार ।
फिर मैं निकल गई कदमों ले , मस्ती में खो पंख पसार।।४
अब कम मिलने की आदत से, मिले इंटरनैट बन तार
अब तो साथ भी नहीं पाता ,इसलिए खोया सगा कार।।५
अपनों से पहले मिलों बोल ,तभी अंत हो ये सब दौर ।
तभी समझ आये ये रिश्ते , मनभावन सा यह आसार ।।६
— रेखा मोहन

*रेखा मोहन

रेखा मोहन एक सर्वगुण सम्पन्न लेखिका हैं | रेखा मोहन का जन्म तारीख ७ अक्टूबर को पिता श्री सोम प्रकाश और माता श्रीमती कृष्णा चोपड़ा के घर हुआ| रेखा मोहन की शैक्षिक योग्यताओं में एम.ऐ. हिन्दी, एम.ऐ. पंजाबी, इंग्लिश इलीकटीव, बी.एड., डिप्लोमा उर्दू और ओप्शन संस्कृत सम्मिलित हैं| उनके पति श्री योगीन्द्र मोहन लेखन–कला में पूर्ण सहयोग देते हैं| उनको पटियाला गौरव, बेस्ट टीचर, सामाजिक क्षेत्र में बेस्ट सर्विस अवार्ड से सम्मानित किया जा चूका है| रेखा मोहन की लिखी रचनाएँ बहुत से समाचार-पत्रों और मैगज़ीनों में प्रकाशित होती रहती हैं| Address: E-201, Type III Behind Harpal Tiwana Auditorium Model Town, PATIALA ईमेल [email protected]