कविता

दिसम्बर

सुनो दिसम्बर
पल- पल जा रहे हो तुम छोड़कर

पर तुम जानते हो ना !
तुम्हारा यूँ चुपके-चुपके चले जाना
एक खूबसूरत वक्त (दोस्त) को खोने जैसा
महसूस हो रहा मुझे

मैंने मेरे दिल की वो सारी बातें की तुमसे
जिसके होने से कई बार रोई और मुस्कुराई मैं
संभाला तुमने ही तो था

सुनो दिसम्बर
एक गुजारिश है तुमसे दोस्त
जाते-जाते पैगाम दे देना उन्हें मेरा तुम

उनके सीने में ये एहसास भर देना
मेरी चाहत गुलाबी है और रहेगी सदा
निभा जाना दोस्ती तुम ये मेरा

बस इतना ही
तुम्हारे साथ बीते पल याद आएंगे
आना फिर तुम अगले बरस
मुझे इंतजार रहेगा मेरे दोस्त💐

*बबली सिन्हा

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