गज़ल
हाल-ए-दिल सबको सुनाने की ज़रूरत क्या है
अश्क सरेआम बहाने की ज़रूरत क्या है
============================
तोड़ देते हैं रिश्ता बोझ अगर लगता हो
इस तरह नज़रें चुराने की ज़रूरत क्या है
============================
हम तो मर जाएँगे थोड़ी सी बेरूखी से ही
तुमको तलवार उठाने की ज़रूरत क्या है
============================
खाक हो जाएंगे हम दीदा-ए-आतिश से भी
गैरों से मिल के जलाने की ज़रूरत क्या है
============================
ज़िंदगी नाम है मिल-जुल के जिए जाने का
अकेले बोझ उठाने की ज़रूरत क्या है
============================
तुम नहीं हो तो करूँगा क्या मैं ज़माने का
और तुम हो तो ज़माने की ज़रूरत क्या है
============================
नई दुनिया, नए साथी तुम्हें मुबारक हों
अब किसी दोस्त पुराने की ज़रूरत क्या है
============================
आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।