अधूरी चाहत
आखिर आज वो पल आ ही गया जिसे सोच सोच कर सीमा पिछले 5 दिन से बारंबार भावुक हो रही थी। उसे वापिस वृन्दावन जाना था, जहाँ उसका पति पिछले 5 दिन से बेसब्री से सीमा की प्रतीक्षा कर रहा था। बड़ी मुश्किल से उसने अपने पति को अपनी बहन के घर दिल्ली भेजने के लिए मनाया था। आखिरकार उसके पति ने उसको 5 दिन में वापिस आने की शर्त के साथ दिल्ली जाने की अनुमति दी। इस से पहले आज तक वो पति के बिना कहीं नही गयी थी। पहली बार उसे उसकी चचेरी बहन ऋचा ने अपने घर दिल्ली आने की जिद्द की थी। आखिर 18 साल बाद जो मिले थे दोनों।
सीमा अपनी चचेरी बहन ऋचा और जीजू विकास के घर पहुंच ही गयी थी। मगर 5 दिन कैसे बीत गए पता ही नही चला था। सबसे ज्यादा दुख उसे यह बात सोच सोच कर हो रहा था कि अब वह अपने जीजू विकास, जो कि उसका मित्र भी बन चुका था, से शायद कभी बात नही कर पाएगी।
18 साल हो गए थे विकास की शादी को। सीमा उसकी शादी में केवल आधे घंटे के लिए ही आयी थी। उसकी चचेरी बहन ऋचा के साथ विकास की शादी हो रही थी। पहली बार उस शादी में ही उसने विकास को देखा था। जाने क्यों एक आकर्षण था महसूस हुआ था उसे विकास जी को देख कर। लिहाज़ा, वो कुछ ही देर में अपनी बहन और विकास जीजू से मिलकर अपनी माँ के साथ रवाना हो गयी थी क्योंकि अगले दिन उन्होंने सीमा को लेकर वृन्दावन जाना था जहाँ उसके लिए भी एक लड़का देखा हुआ था जो सीमा को दिखाना था ताकि दोनों बात कर सकें और एक दूसरे को पसंद कर सकें।
अगली सुबह ही वो लोग वृन्दावन के लिए रवाना हो गए। ठीक 10 बजे वो तय कार्यक्रम के अनुसार बिहारी जी के मंदिर के पीछे धर्मशाला में पहुंच गए। सीमा को उसके लिए चयनित लड़के से मिलाया गया। लड़का इतना ज्यादा उत्सुक था कि उसने अपने माता पिता से कहा कि शादी आज और अभी कर दो। न चाहते हुए भी सीमा के माँ बाप को उनकी बात माननी पड़ी और सीमा की शादी उसी दिन चुन्नी चढ़ाकर उस लड़के के साथ वहीं वृन्दावन में कर दी गयी।
सब कुछ बदल चुका था। एक अल्हड़ लड़की अब किसी घर की बहू बन चुकी थी। जहाँ सुवह सुबह उठना, सारे घर के लिए खाना बनाना सफाई करना, सास ससुर का ध्यान रखना आदि उसकी दिनचर्या थी। घर से बाहर निकलने का शोक तो उसे कभी रहा है नही था। बस ससुराल में भी उसका जीवन घर की चारदीवारी तक सीमित था। वो उसी में संतुष्ट थी। पति भी खुश था कि उसकी बीवी न फालतू किसी से बात करती थी न ही बाहर घूमती थी। सब कुछ सामान्य रूप से ही चल रहा था।
लेकिन विधाता को कुछ और ही स्वीकार्य था। 2 वक़्त की रोटी में खुश रहने वाली सीमा कब उदासियों में घिर जायगी कौन जानता था। एक दिन यूं ही बैठे बैठे कुछ सोच रही थी कि उसके मोबाइल में व्हाट्स एप्प की घंटी बजी। किसी अनजान नंबर से संदेश था। उसने पूछा -“कौन”? “पहचानो तो जाने”- उधर से उत्तर मिला था। सीमा ज्यादा महत्ता न देते हुए सीधे से बोली कि बताईये आप कौन हैं पहेलियां मत बुझाइए। इतने में एक तस्वीर व्हाट्स एप्प सन्देश में नज़र आती है। जब ध्यान से देखा तो सीमा की आँखें खुली रह गयी। ये विकास था। जिसकी शादी उसकी चचेरी बहन से 18 साल पहले हुई थी और जिसे देखते ही वो आकर्षित हो गयी थी। लेकिन वक़्त कितना बदल चुका था। आज वो भी किसी की पत्नी थी। “नमस्ते जीजू”- खुद को सम्भालते हुए सीमा ने उत्तर दिया था। “कहिए आज कैसे याद आ गयी, नंबर कहाँ से मिला, ऋचा दी कैसी हैं, आप कैसे हैं?” अनगिनत सवालों की झड़ी लगा दी थी सीमा ने।
“हम सब ठीक हैं। यहाँ वृन्दावन आये हुए थे तो आपका नंबर मिला था किसी से, सोचा कि आप यही रहती हो तो आपसे मिलते चलें, कहाँ है आपका घर जल्दी बताओ”- विकास ने कहा।
सीमा कुछ समझ नही पा रही थी। आज अचानक वो व्यक्ति उसके घर आएगा जिसे देखते ही उसको कुछ अच्छा सा महसूस हुआ था। ज्यादा समय न गवाते हुए उसने विकास को अपना पता भेज “बी-112, सेवा कुंज, वृन्दावन।” ।
ठीक साढ़े बारह बजे दरवाजे की घंटी बजी। सामने विकास और ऋचा थेे। साथ मे उनकी 2 बेटियां। खूब सारी बाते हुई। इन 18 सालों के खट्टे मीठे अनुभवों को बांटा गया। सीमा उनसे बात करके काफी खुश थी। शायद आज तक कभी इतनी खुश नही हुई थी। 18 सालों की शादीशुदा जिंदगी में आज वो खुल कर हँसी थी। इतने में सीमा का पति भी घर आ चुका था। उन सबसे मिलकर सीमा का पति उमेश भी काफी खुश था। ढेरों बातें हुई। शाम को 6 बजे उन सब ने विदा ली।
उन सबके जाने के बाद सीमा का पति उमेश सीमा से उन लोगों के बारे में पूछ रहा था। सीमा ने बताया कि वो लोग शादी के बाद पहली बार मिले हैं। लेकिन उनके बारे में बात करते हुए सीमा के चेहरे पर उदासी थी। उमेश चेहरे को पढ़ने में माहिर था। उसे अंदाज़ा हो गया था कि सीमा दिन में जितनी खुश दिख रही थी अब उतनी ही उदास। खैर, वो अपनी दिनचर्या में लग गया और वो बातें उसके दिमाग से निकल गयी।
अब विकास और सीमा की फ़ोन पर बातें होने लगीं। दोनों खूब हँसते। लेकिन सीमा ने विकास से कह रखा था कि जब तक वो फ़ोन या मैसेज न करे तब तक विकास न तो मेसेज करे न फ़ोन करे क्योंकि उसके पति को ये सब बिल्कुल पसंद नही है। बातों बातो में सीमा एक अलग से दुनिया मे जीने लगी थी। जबतक दिन में एक बार विकास से बात न हो तब तक उसे चैन नही आता था। कई बार तो आधी रात को भी मोबाइल उठा कर शुरू हो जाती। विकास कहता था कि सीमा ध्यान रखो जिस दिन उमेश ने देख लिया सब गड़बड़ हो जाएगा। मगर विकास के साथ जिन खुशियों को वो जी रही थी उनमें वो आने वाले खतरे से अनजान थी।
उस दिन जब वो नहाने गयी थी उसका मोबाइल पलंग पर ही रखा था। वैसे तो उसका पति 9 बजे से पहले उठता नही था मगर उस दिन 6 बजे उसकी नींद
खुल गई थी। सीमा अपने ख्यालों में खोई हुई नहा कर अपने कमरे में गयी तो मोबाइल उसके पति के हाथ मे था।
सब कुछ पढ़ लिया था उमेश ने। काफी क्लेश हुआ था उस दिन उनके घर। मोबाइल छीन लिया गया था। सीमा ने काफी समझाया कि वो विकास जी से एक दोस्त की तरह बात करती है और ऐसा वैसा कुछ नही है मगर उसने एक न सुनी। अन्तिम चेतावनी देते हुए उसे कहा कि आज के बाद वो विकास से बात नही करेगी।
उस दिन के बाद खुशियाँ कहाँ गुम हो गयी सीमा को पता ही नही चला था। फिर से वही दिनचर्या शुरू हो गयी। उसे अब कोई उम्मीद नही थी कि शायद कभी विकास से बात हो पाएगी।
उस दिन वो पूजा करने जा रही थी। मोबाइल की घंटी बजी। फ़ोन पति के हाथ मे था। विकास का ही फ़ोन था। उसके पति ने फ़ोन को ओके किया। उधर से ऋचा की आवाज थी। उमेश को कुछ पल के लिए सकून मिला कि चलो विकास नही था फ़ोन पर। दोनों में काफी बाते हई। उमेश ने भी बहुत अच्छे से बात की ऋचा से और ऋचा को महसूस नही होने दिया कि उनके घर मे विकास को लेकर कोई अनबन चल रही है। आखिर कहता भी कैसे, बात तो दोनों ही कर रहे थे। इसमें उसको अपनी भी बेइज़्ज़ती महसूस होती।
“नही नही दीदी सीमा को दिल्ली नही भेज सकता क्योंकि घर मे काफी दिक्कत हो जाती है”- उमेश ऋचा को फ़ोन पर कह रहा था। सीमा समझ गयी कि ऋचा उमेश जी को सीमा के दिल्ली आने के लिए जिद्द कर रही है। उमेश फ़ोन पर यही कह रहा था कि नही सीमा नही आ सकती। जाने कितनी देर तक उमेश और ऋचा में बहस होती रही थी। “अच्छा दी, भेज दूंगा लेकिन सिर्फ 5 दिन के लिए”- उमेश कह रहा था।
ये सुन कर सीमा के अंदर एक हलचल सी हो रही थी। बिना सोची बिना समझी हुई एक अनजान सी खुशी जैसे उसके हृदय में दस्तक दे रही थी। “सुनो सीमा, ऋचा जिद्द कर रही है कि सीमा को दिल्ली भेज दो मैने हाँ कर दी है।लेकिन सिर्फ 5 दिन के लिए। और हाँ ध्यान रखना विकास से दूर रहना”।
सीमा हाँ में ही गर्दन हिलाए जा रही थी। उसे कुछ सुनाई नही दे रहा था। बस इतना ही सुना था कि वो अब दिल्ली जा रही है 5 दिन के लिए। उमेश ने जब ऋचा से पूछा था कि सीमा को स्टेशन से लेने कौन आएगा तो ऋचा ने कहा था वह खुद आएगी। विकास के पास समय नही होता वो काम मे व्यस्त है ऐसा कहा था। शायद इसीलिए उमेश में सीमा को दिल्ली भेजने के लिए हाँ कर दी थी कि विकास अपने काम मे व्यस्त होगा।
ट्रेन दिल्ली के स्टेशन पर पहुंच चुकी थी। उसकी आंखें ऋचा को ढूँढ़ रही थी। अचानक भीड़ में से किसी ने उसके हाथ से ब्रीफकेस ले लिया। उसने देखा तो सामने विकास खड़ा था। उसकी खुशी का ठिकाना नही रहा। वो कुछ समझ नही पा रही थी कि ये सब क्या हो रहा था। लेकिन वो खुश थी। मन ही मन वो सोच रही थी कि ये 5 दिन उसने ऐसे व्यतीत करने हैं कि जीवन भर उन यादों को अपने साथ रखेगी।
पूरे रास्ते कार में वो विकास को देखते आ रही थी। उसकी आँखों से पलकें हटाने का ही मन नही कर रहा था सीमा का। आज पहला दिन जो था। अभी 4 दिन और बिताने थे दिल्ली में।
शायद उसकी खुशी को फिर से ग्रहण लगने वाला था। उमेश का फ़ोन था। उमेश को पता लग चुका था कि विकास काम पर नही था बल्कि छुट्टी लेके घर ही बैठा हुआ था और सीमा को लेने भी विकास ही गया था। उसके गुस्से का ठिकाना नही था। मगर क्या हो सकता था। लेकिन इतना तो सीमा समझ चुकी थी कि उसे जो ये 5 दिन के पल मिले हैं वो अब फिर कभी नही मिल पाएंगे।
सीमा ने सोच लिया था कि जो होना है वो तो होगा लेकिन इन दिनों को वो खुल के बिताएगी। खूब हंसेगी और खूब बाते करेगी। 18 सालों की कसर वो इन्ही 5 दिनों में बिता देना चाहती थी। धीरे धीरे 3 दिन बीत गए। आज चौथा दिन था। आज विकास उसके साथ अकेला था। वो दिल्ली के चिड़ियाघर घूमने आए थे। एक जगह देख कर छाया में बैठ गए। घूमने का तो बहाना था। वो विकास के साथ आज हर पल ऐसे बिताना चाहती थी जो जिंदगी भर यादगार बन जाये। उसके हाथ मे हाथ डालकर वो विकास की आंखों में देख रही थी। दोनों चुप थे। शब्द गायब थे। जुबान भी नही थी। बस खामोशी ही उनकी भाषा थी जिससे वो आंखों ही आंखों में एक दूसरे को देख कर मौन रूपी भाषा से बातें कर रहे थे। जाने कैसे संध्या भी हो गयी और वो बाहर आ गए।
आज 5वां दिन था। 1 बजे की ट्रेन से उसने वापिस वृन्दावन जाना था। आंखों में नमी थी मगर रो नही सकती थी। जो चाहत विकास और सीमा ने एक दूजे के लिए महसूस की थी आज वो शायद दम तोड़ रही थी। यद्यपि उसे ये भी खुशी थी कि उसने बिकास के साथ जो ये पल बिताए हैं वो सदा समेट कर रखेगी। मगर आज के बाद उसकी आवाज भी नही सुन पाएगी ये भी वो जानती थी। उमेश को पता लग चुका था कि सीमा और विकस इन 5 दिनों में साथ साथ थे। शायद एक स्त्री के लिए इस से अधिक चिंता से तनाव का विषय और हो ही नही सकता कि उसके पति को ये पता लग जाए कि उसकी पत्नी शरीर से तो उसके साथ है मगर उसके मन की चाहत किसी और के साथ है।
1 बज चुका था। इंजन ने सीटी दे दी थी। शनै शनै ट्रैन आगे बढ़ रही थी। जैसे जैसे ट्रैन दूर हो रही थी विकास की आंखें भी शायद आँसुओं से अछूती नही रही थी। यही बात सीमा को और दर्द दे रही थी।। आज सीमा वापिस अपने पति के पास जा तो रही थी। मगर एक अधूरी सी चाहत लिए। वो चाहत, जो शायद हमेशा अधूरी ही रहेगी। क्योंकि हमारे समाज मे ये वो चाहत है जो कभी पूरी हो भी जाती है तो समाज की दृष्टि में उसे चरित्रहीन कहा जाता है। इसलिए उसे अब जीना था। इसी अतृप्त चाहत के साथ।
— महेश कुमार माटा