गज़ल
अक्लमंदों से ज्यादा अक्ल उस जाहिल में थी
क्या बला की होशमंदी तौबा उस गाफिल में थी
जानने की कोशिशें की तो बहुत मैंने मगर
हो न पाई अफशां पर जो बात उसके दिल में थी
यूँ तो शिरकत की बहुत सी महफिलों में आज तक
कुछ अलग ही बात लेकिन आप की महफिल में थी
तूफान से लड़ने की खातिर ही हुए थे पैदा हम
बाँध कर रखने की कुव्वत हमको किस साहिल में थी
वक्त – ए – आखिर ये हुआ मालूम कि लज़्ज़त यहाँ
हासिल-ए-मंज़िल से ज्यादा ख्वाहिश-ए-मंज़िल में थी
— भरत मल्होत्रा