कविता

जिधर देखिये उधर उदाशी ही उदाशी है

जिधर देखिये उधर उदाशी ही उदाशी है

जिधर देखिये उधर उदाशी ही उदाशी है,
अधिकांश चेहरे पर छले जाने की मायूसी है।
अपना या पराया हो,कोई न इससे बाकी है,
त्रस्त आदमी की बदहाली नजर आती है।

आज की उदाशी की कारण बेरोजगारी है,
जिस घर में देख लीजिए एक घर न बाकी है।
मजदूर वर्ग में फैल रहा गरीबी और भुखमरी है,
शासक वर्ग का मत कहिये मस्ती ही मस्ती है।

शासक के नजर में हर सवाल बेतूकी है,
उनको तो सिर्फ चाटुकारिता ही अच्छी लगती है।
फूट डाल शासन करना इनकी कहानी है,
रोता है कोई तो क्या हुआ,बस हुकूमत चलानी है।

जाग जाओ साथी मेरे यह व्यवस्था बदलनी है,
बहुत जुल्म सह लिए अपनी अधिकार पानी है।
सिर्फ रोते रहने से हमें कुछ न मिलने वाली है,
हुँकार भर और क्रान्ति कर हर अन्याय को मिटानी है।

न राजा रहे न रंक रहे हमें ऐसी राज लानी है,
हर आदमी के झोली में हमें खुशियाँ भरनी है।
महक उठेगी वादियाँ हमें वो बहार लानी है।,
गली-गली,गाँव-शहर हमें बात ये फैलानी है।

देर मत करो अब न सोचने की बारी है,
हर तरफ देख लो लूट की कई निशानी है।
जिधर देखिये उधर उदाशी ही उदाशी है,
अधिकांश चेहरे पर छले जाने की निशानी है।

अमरेन्द्र
पचरुखिया,फतुहा,पटना,बिहार।
(स्वरचित एवं मौलिक)

अमरेन्द्र कुमार

पता:-पचरुखिया, फतुहा, पटना, बिहार मो. :-9263582278