गज़ल
पैसों की तरह जेब में डाले भी गए हैं
हम खर्च भी हुए हैं, संभाले भी गए हैं
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खून-ए-जिगर से सुर्ख किया जिसके लबों को
आज उसी के दिल से निकाले भी गए हैं
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यूँ ही नहीं बरसती आसमान से शराब
शायद कहीं कुछ जाम उछाले भी गए हैं
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जुल्म ही नहीं हुए हम पर तमाम उम्र
बचपन में बड़े नाज़ से पाले भी गए हैं
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किनारों पे लगे फूल दे रहे हैं गवाही
इस राह से कुछ चाहने वाले भी गए हैं
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।