लघुकथा

हौसला

अकेले दम ही देश के 25 राज्‍यों में यात्रा करके प्रीति आज ही लौटी थी. शादी के लिए पच्चीसों रिश्ते आए हुए थे. मां ने एक-एक कर बताया. सोचने के लिए समय मांगकर प्रीति पुराने दिनों में खो गई.
जेठ की तपती दोपहरी थी. लू अपने पूरे शबाब पर थी. बैठे-बैठे अचानक प्रीति गिर पड़ी. “लू लग गई है.” मां ने समझा. झटपट नींबू पानी बनाकर चम्मच से पिलाया. प्रीति को होश नहीं आया. डॉक्टर के पास ले गई.
“मिर्गी का दौरा है. अस्पताल में दाखिल करवाना होगा. इसे हम संभालते हैं, तब तक नीचे से ये दवाइयां लेकर आइए.”
“मिर्गी का दौरा फिर भी पड़ सकता है, ध्यान रखते रहिए.” की हिदायत के साथ छः दिन बाद अस्पताल से छुट्टी मिली.
पड़ोस में शोर मच गया. “छोरी को मिर्गी के दौरे आने लगे हैं, अब कौन करेगा उससे शादी!”
“जो मुसीबत गले पड़ गई है, उसे तो रोकर या हंसकर झेलना ही पड़ेगा!” प्रीति और उसके घरवालों ने हंसकर झेलने का मन बनाया. गले पड़े ढोल को हंसकर बजाने का मन बनाना काम आया. बीमारी को ही उसने अपना हौसला बना लिया था. यात्रा के शौकीन प्रेमसागर से उसका विवाह पक्का हो गया था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244