कर गये
ठिठुरती सी जिंदगी, अलाव कर गये|
जख्म नासूर था, वो घाव भर गये|
संभाला था खुद को , पर लगाव कर गये|
बह रहे थे रिश्ते जमाव कर गये|
तूफान को थाम वो, ठहराव कर गये|
डूबने का डर था नाव कर गये|
बैसाखी को वो तो पाँव कर गये|
धूप तेज बहुत थी छाँव कर गये|
जिंदगी बस यूँ ही थी, उत्पन्न चाव कर गये|
प्रेम का मन में फिर, रिसाव कर गये|
— सविता सिंह मीरा