रामराज्य
सतयुग के राम को कलयुग में लाना चाहते हो
कैसे बावरे हो तुम क्या चाहते हो
आज न वैसी कौशल्या मैया है
न भरत सा भैया है
न किसी नारी में सीता की छवि है
जो महलों के सुख छोड़
पति संग वन -वन भटके
न राम-सी मर्यादा है किसी पुरुष में
ना गुरु की गरिमा है कोई
न लक्ष्मण -सा अनुज है कोई !
हां रावण है ज़रूर
लेकिन उस युग में एक था रावण
जिसके सिर थे दस
लेकिन उसकी भी थी कुछ मर्यादाएं
आज तो हजारों कलयुगी रावण है
जिसके सिर है हजारों -हजार
नहीं है उसके दुर्गुणों की सीमाएं कोई
सतयुग के राम से नहीं हो पाएगा
उन सभी का संहार ……….!
अगर आज के युग के रावण का करना है संहार
तो जन्म लेना होगा आज के राम को
एक नहीं हजारों राम को
अगर राम की परिकल्पना को करनी हो पूरी
पहले तुम अपने अन्दर के राम को जगाओ
राम-सा पुत्र , राम -सा भाई बनकर दिखाओ
हमारे हुक्मरान को
राम-सा राजा बनकर दिखाना होगा
तभी रामराज्य की परिकल्पना होगी पूरी
राम को कलयुग में लाने का सपना होगा साकार।।
— विभा कुमारी “नीरजा”