मां,मैं शादी नही करना चाहती
नेहा एक नए जमाने की लड़की है। वह नया सोंचती है।उसके ख्यालात नए हैं। उसके अंदर नयापन है। उड़ना चाहती है। नई वादियों में नए तराने जिंदगी की लिखना चाहती है। अब वह जवान हो गई है। शादी के योग्य हो गई है। मां उसकी अब सोंचती है कि नेहा में जो उड़ान है, वह ठीक है लेकिन शादी विवाह के बाद पति के घर रहना ही पड़ेगा उसे कैसे पति के घर रहना है। वह सारी चीज सीखे।
”मां मै शादी नही करना चाहती। अपना घर छोड़कर दूसरे के घर मैं नही रहना चाहती हूं। शादी मै तभी करूंगी जब लड़का आकर हमारे घर रहे। हमारे घर रहने में क्या हर्ज है।जमाना बदल गया है” नेहा ने आवेश में आकर मम्मी को समझाया।
”पर बेटी जमाना ऐसा नही स्वीकार करेगा। इस तरह करने से बदनामी होगी। लोग क्या कहेंगे? ”
”कुछ नही कहेंगे। मैं लडको जैसा रहती हूं। कोई कुछ नही कहता है। छोटे छोटे बाल रखती हू। जींस पहनती हूं।सिगरेट पीती हूं। मर्दों जैसा गालियां देती हूं। शराब भी पीती हूं। रात में बारह एक बजे लडको के साथ घूम कर आती हूं। पार्टी होटल में जाती हूं। कुछ नही होगा मां”
”ऐसा कोई लड़का नही मिलेगा बेटी”
”एक लड़का है जो मेरे घर रहना चाहता है मां। सब लडको वाला सुविधा मुझे दी। लडको जैसा रखी। एक सुविधा ये भी दे दो मां।”
”पर बेटी तुम लड़की हो। तुम्हे लड़कियों जैसा रहना पड़ेगा”
“मां तुम तो मुझे लडको जैसा रखना चाहती थी। मुझे एकदम लडको वाला भाव भरी हो। लड़कियों वाला संस्कार आप ने दिया नही। मैं शराब पीती रही। सिगरेट पीती रही।आवारागर्दी करती रही। रोका नहीं। मुझे लड़कियों वाला सलीका सिखाया ही नही। अदब बताया नही। जब मै दुल्हन बन कर जाऊंगी तो वहां संस्कार अदब की ज़रूरत होगी।यह सब मैं कुछ नही कर पाऊंगी और मेरा रिश्ता टूट जायेगा फिर मैं यहीं आकर रहूंगी। यही आकर रहना ही है तो ऐसे लड़के से शादी करूं ताकि मेरा रिश्ता बचा रहे मां” यह कहकर नेहा फफक फफक रोने लगी। नेहा की मां समझ गई कि मेरी बिटिया क्या कहना चाहती है।
सच में बेटियां दूसरो के घर ही रहेगी। बिटिया को बिटिया वाला संस्कार ही दो ताकि आगे चलकर दूसरे के घर में स्वयं को अर्जेस्ट कर सकें नहीं तो रिश्ता लगभग टूटना तय है।
— जयचन्द प्रजापति ’जय’