गीत/नवगीत

बचपन के दिन

बचपन के वो दिन आज याद आए
कितने बेपरवाह मस्तमौला थे हम
शैतानियों के वो सारे पल याद आए

टिकते नहीं थे एक भी पल घर में
आता हूँ कह,निकल जाते थे घर से
बहानो के सारे वो तरीके याद आए

हर चीज़ लगती थी कितनी आसान
ख्वाबों के वो महल छूते थे आसमान
आसमानी ख्वाबों के दिन याद आए

ज़िद को मनवाना था कितना आसान
कितना करते थे हम सभी को परेशान
ज़िद कर,कुछ पा लेने के दिन याद आए

— आशीष शर्मा ‘अमृत’

आशीष शर्मा 'अमृत'

जयपुर, राजस्थान