लघुकथा

अब पछताये होत क्या?

शुभम को सरला ने अंग्रेजी स्कूल में डाला है। थोडा काम ज्यादा कर लेगी, लेकिन  उसे बडा आदमी बनायेगी। खूब पढायेगी। 

बड़ा साहब बनेगा मेरा लाडला।

अपनी कुशाग्र बुद्धिमत्ता,अथक अभ्यास से सफलता की सीढ़ियां चढता गया शुभम।

आज बड़ा अफसर बना है।

शादी अपनी मर्जी से कर दी है उसने अपनी सहपाठी सौम्या से। अमीर घर की लाजो, सीधी-साधी सरला की  बेटी न बन पाई।

शुभम के साथ अलग रहने लगी।

अकेलापन खलता तब वह शुभम से मिलने उसके ऑफिस में आ जाती।

” साहब व्यस्त है। मैडम जी ने कहा है, बाद में आना।”

ठगी सी कुछ पल ठिठक गयी वह।

अब दोबारा नहीं जाएगी वह। मन ही मन ठान लिया उसने। 

आसपास के बच्चों को खूब लाड प्यार करेगी। 

शुभम को बड़े चाव से पढाया, लेकिन शायद संस्कार  देना भूल गयी वह।

अब पछताये होत क्या?

आंसू भरी अंखियां राह तकती हैं लाडले की।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८