कविता

कोई नहीं जानता

मैंने
अपने पापों के लिए
खुद को माफ कर दिया है ।
तुम भी माफ कर देना
मुझे
इस उम्मीद के साथ
लिख रहा हूं तुम्हें।
मुमकिन है
कि
वह जवानी हो
जिसे तुम बुढ़ापा
समझती हो।
वह
जो ऊपर वाला है
उसकी इच्छा क्या है
वह न तो तुम
जानती हो
न ही जानता हूं मैं।

— वाई. वेद प्रकाश

वाई. वेद प्रकाश

द्वारा विद्या रमण फाउण्डेशन 121, शंकर नगर,मुराई बाग,डलमऊ, रायबरेली उत्तर प्रदेश 229207 M-9670040890

Leave a Reply