गीत/नवगीत

मुझे निरंतर चलना है

गिरकर,एक बार फिर से मुझे सम्भलना है।
मुझे निरंतर चलना है,मुझे निरंतर चलना है।।

लोभ स्वार्थ बिना,कर्म पथ पर आगे बढ़ना है।
आशाओं के दीप,मन में प्रज्वलित करना है।
मुझे निरंतर चलना है,मुझे निरंतर चलना है।।

बन जुगनू, अब मुझे निशा का तम हरना है।
बाधाएँ,मुझे क्या रोकेगी?नित बाधाओं से लड़ना है।
मुझे निरंतर चलना है, मुझे निरंतर चलना है।।

लक्ष्य हमें ध्येय रहे,गगनचुंबी शिखर जय करना है।
काँच के टुकड़े की भाँति मुझे भट्ठी में तपना है,
तपकर,गलकर फिर से नए रूप में निखरना है।

जय की आहट सुन, सफलता ख़ुद पुकारेगी,
संग तेरे अब चलना है, मुझे निरंतर चलना है।।
मुझे निरंतर चलना है, मुझे निरंतर चलना है।।

— महेन्द्र साहू”खलारीवाला”

महेन्द्र साहू "खलारीवाला"

मैं, एक शिक्षक हूँ। कविता लिखना मुझे अच्छा लगता है। ग्राम-खलारी, पोस्ट-कलंगपुर तहसील-गुंडरदेही, जिला-बालोद (छ ग) पिन कोड-491223 मो नं 9755466917