धनतेरस से भाई दूज तक पंचदिवसीय महापर्व
वैश्विक स्तरपर अगर हम गहराई से देखें तो भारत में करीब करीब हर दिन किसी न किसी पर्व को मनाने का होता है। कभी सामाजिक जातीय धार्मिक, राष्ट्रीय तो कभी चुनावी महापर्व जैसे 20 नवंबर 2024 को महाराष्ट्र और झारखंड का चुनावी महापर्व तथा 23 नवंबर 2024 को परिणाम आने का महापर्व मनाने का दिन है, इन त्योहारों का एक महत्वपूर्ण भाव अनेकता में एकता है,इसके कारण ही भारत एक विशालकाय जनसंख्या वाला देश विभिन्न धर्मो जातियों उपजातियों के बीच सर्वधर्म सद्भाव के प्रेम से संजोया हुआ एक खूबसूरत गुलदस्ता है,इसीलिए ही हर धर्म समाज का पर्व हर दिन आनास्वाभाविक है। परंतु उन कुछ पर्वों में से धनतेरस से दीपावली और फिर छठ महापर्व एक ऐसा खूबसूरत त्यौहार पर्व है जिसे भारत में ही नहीं पूरी दुनियाँ में बसे भारतवंशियों द्वारा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत 29 अक्टूबर 2024 से हो गई है जो 5 दिन तक बड़ी सौहार्दपूर्ण के साथ और खुशियों के साथ मनाया जा रहा है, फिर अब दीपावली के छठवें दिन से छठ पर्व मनाया जाएगा, जो धार्मिक आस्था का खूबसूरत प्रतीक है। चूंकि दीप जले दीपावली आई, धनतेरस ने दीपावली का आगाज़ कर दिया है और पांच दिवसीय दीपावली पर्व का धनतेरस के भावपूर्ण स्वागत से शुरू हो गया है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे दुनियां के हर देश में बसे भारतवंशी धनतेरस से भाई दूज तक फिर छठ के महात्योहार में खुशियों से सराबोर होकर पूर्ण तृप्ति होंगे।
साथियों बात अगर हम दीपावली महापर्व की शुरुआत धनतेरस मंगलवार 29 अक्टूबर 2024 से शुरू होने की करें तो, दीपावली का शुभारंभ धनतेरस के दिन से ही हो जाता है और भाई दूज तक यह 5 दिवसीय उत्सव मनाया जाता है। सबसे पहले धनतेरस, फिर नरक चतुर्दशी, उसके बाद बड़ी दिवाली, फिर गोवर्द्धन पूजा और सबसे आखिर में भाई दूज पर इस पर्व की समाप्ति होती है।धनतेरस इस बार आज 29 अक्टूबर 2024 को मनाई जा रही है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस मनाई जाती है। पौराणिक मान्यताओं में यह बताया गया है कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को समुद्र मंथन से भगवान धनवंतरी प्रकट हुए थे और उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। उन्हें विष्णु भगवान का अवतार माना जाता है। धनतेरस को उनके प्राकट्योत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन धन के देवता कुबेरजी और धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है और सोने-चांदी के अलावा बर्तनों की खरीद करते हैं। धनतेरस को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस दिन खरीदी गईवस्तुओं में 13 गुना वृद्धि होती है और हमको धन की कमी नहीं होती।मृत जीवित हो आता था।विधाता के कार्य में यह बहुत बड़ा व्यवधान पड़ गया। सृष्टि में भयंकर अव्यवस्था उत्पन्न होने की आशंका के भय से देवताओं ने इन्हें छल से लोप कर दिया। वैद्यगण इस दिन धन्वंतरी जी का पूजन करते हैं और वर मांगते हैं कि उनकी औषधि व उपचार में ऐसी शक्ति आ जाए जिससे रोगी को स्वास्थ्य लाभ हो। सद्गृहस्थ इस दिन अमृत पात्र को स्मरण कर नए बर्तन घर में लाकर धनतेरस मनाते हैं। आज के दिन ही बहुत समय से चले आ रहे मनो मालिन्य को त्याग कर यमराज ने अपनी बहिन यमुना से मिलने हेतु स्वर्ग से पृथ्वी की ओर प्रस्थान किया था। गृहणियां इस दिन से अपनी देहरी पर दीपक दान करती हैं, जिससे यमराज मार्ग में प्रकाश देखकर प्रसन्न हों और उनके गृह जनों के प्रति विशेष करुणा रखें। इस वर्ष यह पर्व 29 अक्टूबर 2024 ई॰ मंगलवार को मनायाजा रहा है, इसी दिन प्रातः सूर्यादय से ही त्रयोदशी तिथि का आगाज हुआ ।अतः उदय व्यापिनी त्रयोदशी होने के कारण प्रदोष व्रत के साथ-साथ प्रदोष काल में दीपदान का अति विशेष महत्व रहेगा।
साथियों बात अगर हम पांच दिवसीय दीपावली महापर्व की करें तो (1) पहला दिन – पहले दिन को धनतेरस कहते हैं। दीपावली महोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है। इसे धन त्रयोदशी भी कहते हैं। धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज, धन के देवता कुबेर और आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि की पूजा का महत्व है। इसी दिन समुद्र मंथन में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे और उनके साथ आभूषण व बहुमूल्य रत्न भी समुद्र मंथन से प्राप्त हुए थे। तभी से इस दिन का नाम धनतेरस पड़ा और इस दिन बर्तन, धातु व आभूषण खरीदने की परंपरा शुरू हुई। इसे रूप चतुर्दशी भी कहते हैं। (2) दूसरा दिन – दूसरे दिन को नरक चतुर्दशी रूप चौदस और काली चौदस कहते हैं। इसी दिन नरकासुर का वध कर भगवान श्रीकृष्ण ने 16,100 कन्याओं को नरकासुर के बंदीगृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष्य में दीयों की बारात सजाई जाती है। इस दिन को लेकर मान्यता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व उबटन एवं स्नान करने से समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है। वहीं इस दिन से एक ओर मान्यता जुड़ी हुई है जिसके अनुसार इस दिन उबटन करने से रूप व सौंदर्य में वृद्धि होती है। इस दिन पांच या सात दीये जलाने की परंपरा है। इस बार यह पर्व 30 अक्टूबर 2024 बुधवार को मनाया जाएगा। (3) तीसरा दिन-अब आता है इस लड़ी के मध्य दैदीप्यमान मंजूषा का उल्लास और उत्साह से भरा महान पर्व दीपावली और महालक्ष्मी पूजन तीसरे दिन को दीपावली कहते हैं। यही मुख्य पर्व होता है। दीपावली का पर्व विशेष रूप से मां लक्ष्मी के पूजन का पर्व होता है। कार्तिक माह की अमावस्या को ही समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं जिन्हें धन, वैभव, ऐश्वर्य और सुख समृद्धि की देवी माना जाता है। अत: इस दिन मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए दीप जलाए जाते हैं ताकि अमावस्या की रात के अंधकार में दीपों से वातावरण रोशन हो जाए।दूसरी मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान रामचन्द्रजी माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों का वनवास समाप्त कर घर लौटे थे। श्रीराम के स्वागत हेतु अयोध्या वासियों ने घर-घर दीप जलाए थे और नगरभर को आभायुक्त कर दिया था। तभी से दीपावली के दिन दीप जलाने की परंपरा है। 5 दिवसीय इस पर्व का प्रमुख दिन लक्ष्मी पूजन अथवा दीपावली होता है।इस दिन रात्रि को धन की देवी लक्ष्मी माता का पूजन विधिपूर्वक करना चाहिए एवं घर के प्रत्येक स्थान को स्वच्छ करके वहां दीपक लगाना चाहिए जिससे घर में लक्ष्मी का वास एवं दरिद्रता का नाश होता है। इस दिन देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश तथा द्रव्य, आभूषण आदि का पूजन करके 13 अथवा 26 दीपकों के मध्य 1 तेल का दीपक रखकर उसकी चारों बातियों को प्रज्वलित करना चाहिए एवं दीपमालिका का पूजन करके उन दीपों को घर में प्रत्येक स्थान पर रखें एवं 4 बातियों वाला दीपक रातभर जलता रहे, ऐसा प्रयास करें। (4) चौथा दिन – इस लड़ी का चौथा माणिक है कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा। यह पर्व भारत की कृषि-प्रधानता,पशुधन उद्योग व व्यवसाय का प्रतीक है। इसी दिन श्री कृष्ण ने अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को छत्र की तरह धारण करके वनस्पति तथा लोगों की इंद्र के प्रकोप से रक्षा की थी। यह गोवर्धन पर्व अन्नकूट के नाम से विख्यात है। इस दिन नाना प्रकार के खाद्यान्न बनाए जाते हैंघी, दूध, दही से युक्त इनका भोग भगवान को लगाया जाता है। शिल्पकार व श्रमिक वर्ग आज के दिन विश्वकर्मा का पूजन भी श्रद्धा भक्तिपूर्वक करते हैं। आज चहुंमुखी विकास और वृद्धि की कामना से दीप जलाए जाते हैं। इस वर्ष यह पर्व 2 नवंबर 2024, शनिवार को मनाया जाएगा।कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट उत्सव मनाना जाता है। इसे पड़वा या प्रतिपदा भी कहते हैं। खासकर इस दिन घर के पालतू बैल, गाय, बकरी आदि को अच्छे से स्नान कराकर उन्हें सजाया जाता है। फिर इस दिन घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन बनाए जाते हैं और उनका पूजन कर पकवानों का भोग अर्पित किया जाता है। इस दिन को लेकर मान्यता है कि त्रेतायुग में जब इन्द्रदेव ने गोकुलवासियों से नाराज होकर मूसलधार बारिश शुरू कर दी थी, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर गांववासियों को गोवर्धन की छांव में सुरक्षित किया। तभी से इस दिन गोवर्धन पूजन की परंपरा भी चली आ रही है। (5) पांचवां दिन – माला का पांचवा चमकता पर्व आता है- स्नेह, सौहार्द व प्रीति का प्रतीक यम द्वितीया अथवा भैया-दूज। इस दिन कार्तिक शुक्ल को यमराज अपने दिव्य स्वरूप में अपनी भगिनि यमुना से भेंट करने पहुंचते हैं।इस दिन को भाई दूज और यम द्वितीया कहते हैं। भाई दूज, पांच दिवसीय दीपावली महापर्व का अंतिम दिन होता है। भाई दूज का पर्व भाई-बहन के रिश्ते को प्रगाढ़ बनाने और भाई की लंबी उम्र के लिए मनाया जाता है। रक्षाबंधन के दिन भाई अपनी बहन को अपने घर बुलाता है जबकि भाई दूज पर बहन अपने भाई को अपने घर बुलाकर उसे तिलक कर भोजन कराती है और उसकी लंबी उम्र की कामना करती है।इस दिन को लेकर मान्यता है कि यमराज अपनी बहन यमुनाजी से मिलने के लिए उनके घर आए थे और यमुनाजी ने उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन कराया एवं यह वचन लिया कि इस दिन हर साल वे अपनी बहन के घर भोजन के लिए पधारेंगे। साथ ही जो बहन इस दिन अपने भाई को आमंत्रित कर तिलक करके भोजन कराएगी, उसके भाई की उम्र लंबी होगी। तभी से भाई दूज पर यह परंपरा बन गई।
— किशन सनमुखदास भावनानी