वो मनभावन भोर
हम रोज अपने सोसाइटी जमशेदपुर स्थित टेल्को घोराबंधा आलोक विहार में फूल चुनने जाते हैं। फूल चुनने के क्रम में कभी-कभी सोसाइटी के बाहर गाँव देहात आदिवासियों के घर के तरफ भी चले जाते हैं। जहाँ आदिवासियों का मिट्टी का घर दिखता हैं और हर घर की महिलाएं पुरुष दोनों सुबह-सुबह गोबर से अपने घर बाहर लिपती हुई दिखतीं हैं। झुरमुट से ताकते हुए प्रभु दिनमान, चरती हुई गाये बछड़े, कहीं पूजा की घंटी की आवाज, दृश्य बड़ा ही मनभावन और मनोहारी होता है। शायद हम सभी यह दृश्य देखना भूल गए हैं। फूल चुनने के क्रम में एक जगह ऐसा भी आता है जहाँ एक काफ़ी बड़ा घर है वह भी आदिवासी का उसके घर के बाउंड्री के अंदर काफी वृहद हरसिंगार का वृक्ष है और जैसा की हम सब जानते हरसिंगार के फूल झर जाते हैं तो उस घर के बाहर हरसिंगार के फूल पड़े रहते हैं काफी मात्रा में और वही छोटे-मोटे पहाड़ भी है जिसके ऊपर फूल बड़े स्वच्छ तरीके से पड़े रहते हैं तो हम वहां से चुनतें हैं। तभी एक दूसरे घर से एक महिला निकली उसने कहा कि “मासी फुल चाई तोमा के ऐखाने आसो ना आमार बाड़ी तें ओनेक फूल आछे गो निये जाओ गो माँ”। उस महिला का चेहरा भीतर से दमकता हुआ भोलापन, सरलता सहजता और सुन्दर मुस्कान, जब हम उसके घर के अंदर गये तो शीश झुक गये जब दिखा मेरा प्रिय फूल हरश्रृंगार बिखरा हुआ मेरे आँचल में ओढ़नी में समाने को आतुर । वापस अपने घर आते क्रम में उस महिला की मुस्कान अपने संग अपने आनन पर लेकर आयी। हरश्रृंगार के प्रति मेरी श्रद्धा, आकर्षण और प्रेम ये तो बंशीधर ही जाने। कुछ तो हैं नमन मोहन नागर किशन इस मीरा को उपहार देने के लिए, और प्रभु के चरणों पर अर्पित करने के लिए।
— सविता सिंह मीरा